दो दिल वाले दोस्त
दो दिल वाले दोस्त
बात आज से पच्चीस छब्बीस साल पुरानी है । किसी नए बसे शहर का पुराना हिस्सा,
पुरानी इमारतें, झरोखे, दरवाजे, चोखटे, सांकल और गड्डे से भरी सड़के जहाँ बारिश में नाव चलाने की नौबत आ जाती हो मतलब सड़के घुटनों तक पानी में डूब जाती हों ।
शाम के छः सात बजे का समय बारह वर्षीय रोहन पैर पटकता हुआ घर के बाहर चला जाता है, साथ में मन ही मन बुदबुदाता हुआ :
' मुझे नया बस्ता नहीं चाहिए '
पीछे से कड़क, रोबदार किंतु खुंदस खायी आवाज :
' अरे कोई इस नालायक को समझाए .. यहाँ दो जन की पढ़ाई के लिए हमें अपना पेट काटना पड़ता है और इस साहबजादे को दोस्त के लिए भी नया बस्ता चाहिए ..
पत्नी की ओर मुखातिब होकर वही आवाज फिर गुर्रायी ..
' समझा देना लाडले को चलाए, वही टूटी चेन और कच्ची डोरी वाला बस्ता ..
हराम की कमाई नहीं जो इसके दोस्तों पर लुटाता फिरूँ ...
कई दिनों तक उस दहाड़ की धमक घर में सबको दहलाती रही, फिर धीरे - धीरे बात भूलने की कगार पर आ पहुंची ही थी ..
दो महीने बाद ...
सुबह चार बजे से पानी टप टप्प टपक रहा था, रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था । कोई ऐसा था जो चाहता था पानी और तेज न बरसे ...
पानी तेज बरसा तो स्कूल जाना शायद न हो पाए, मतलब,
पूरे दिन कभी मिट्टी का तेल लेने के लिए लाइन में लगो,
राशन से चीनी ले आओ,
किराने से महीने भर का सामान ले आओ या फिर
दुकान पर बप्पा के साथ बैठो और दिन भर धुड़कियाँ सुनों और नहीं
तो, माँ ही पुराना कपड़ा पकड़ा कर पंखे साफ करवाने लगेगी ...
अच्छा है, दोस्त के साथ मस्ती मज़ा करते हुए वह स्कूल जाए,
दोस्त के साथ लंच करें और गिट्टी खेलें ।
उसने बाहर झांका बहुत नीची बड़ी खिड़की से डहलिया झांक रहा था,
कई फूल गुपचुप उसको देखकर मुस्करा रहे थे जैसे उन्हें कोई रहस्य पता हो ..
वह उठा, नहाकर स्कूल की शर्ट उठायी हल्की नम थी और कुछ सिलवटें भी थी,
पर कोई बात नहीं, सरकारी स्कूल के कई विद्यार्थी बिल्कुल सलेटी ( मैल से ग्रे होचुकी ) तो कुछ बिल्कुल नीली ( अधिक नील ) शर्ट पहन कर आते हैं । उस दिन मास्टर जी पिंक सिटी जयपुर के बारे में बता रहे थे तो सब गोपू की शर्ट देख खीं खीं (हँसना) कर रहे थे उसकी शर्ट लाल कपड़े के साथ धुलने के कारण गुलाबी (पिंक ) हो चुकी थी ।
उसकी शर्ट तो माँ ने बिल्कुल साफ़ धोयी है।
उसने बस्ता बनाया । एक किताब के निश्चित पृष्ठ पर दबाए हुए मोरपंख को छुआ ... सोहन भी उसी किताब के उसी पृष्ठ पर मोरपंख रखता है उसने ही मोरपंख सोहन को लाकर दिया था .. जैसे दो जुड़वा पंख, .. जब वह मोरपंख को यहाँ छुता है उसकी छुअन सोहन की किताब में रखे पंख को भी होती होगी .
तभी बप्पा की आवाज़ आयी :
' अरे ! ये पाजी अभी स्कूल गया कि नहीं ..
बप्पा की आवाज़ से रोहन के दिमाग में ठक्क् सा हथौड़ा चला ..
सोहन के तो बप्पा भी नहीं हैं।
दो साल पहले, बारिश में जमीन धंसने से बनती इमारत ढह गयी । सोहन के पिता : राजमिस्त्री मोहन भी उस मलबे में दब कर परलोक सिधार गए ।
सोहन बहुत रोया था, रोते रोते आंसू के निशान उसके गाल पर पड़ गए थे।
रोहन ने अपने घर से रोटी सब्जी लाकर सोहन को खिलायी थी।
अब, सोहन की मम्मी एक दुकान पर काम करती हैं और उसकी छोटी बहन घर का बचा काम सम्भाल लेती है।
तभी बप्पा ने फिर आवाज दी ..
रोहन रोहन
रोहन ने जल्दी से बस्ता उठाया, माँ टाटा (बाय ) करने बाहर आयी पर वह दौड़ लगा चुका था ।
दस बारह घर छोड़ सोहन के घर के बाहर उसने आवाज़ लगायी ..
सोहन - सोहन ...
बस, जूते का फीता बांध लूं - I
पानी अभी बरस ही रहा था, सामने के पीपल के पेड़ से झप्प, टप्प, खन्न, झन्न जाने कैसी कैसी गिरते पानी की आवाज़े अलग ही संगीत गा रही थी, मेढ़क भी टर्र टर्र की धुन में जिद्द पकड़े थे- मेरी भी सुनो .. सुनो न
' दूर किसी पेड़ से कोयल की कुहू कुहू मन में हिलोर पैदा कर रही थी
तभी अचानक कहीं से जोर से भैंस का राग सुनाई पड़ा :
भा-भा .. भा भा और फिर तेज बिजली के साथ भौम - धड़ाम की कान फोडू बादल फटने सी आवाज ...
रोहन एकदम डर गया तभी सोहन बाहर आया ..
रोहन दौड़कर सोहन से लिपट गया ..
सोहन खसीटते हुए उसे छज्जे के नीचे ले आया .. और कुछ एक मिनट बाद जोर से हँसा :
रोहन की तरह हाथ से इशारा किया :
डर गया बच्चू !
डरपोक -डरपोक ...
रोहन ने सोहन को धौल (पीठ पर जोर से मारना ) मारने के लिए दौड़ लगा दी ..
आगे सोहन पीछे रोहन जैसे ओलम्पिक में इनाम मिलना हो --
दिन दुनिया से बेखबर दो दोस्त दौड़ते जा रहे थे
न बारिश में फिसलने का डर,
न छींट से गंदी होती पेंट की परवाह ...
रोहन ने एक दो बार आवाज़ भी लगाई :
सोहन, रुक जा मेरे भाई ..
पर, स्कूल के दरवाजे पर ही दोनों के पैर थमें ...
रुमाल निकालने के लिए सोहन ने पेंट में हाथ डाला ..
लो, जल्दी -जल्दी में रुमाल घर पर भूल गया ..
अब ... शर्ट आज टू इन वन ( रुमाल का भी काम ) काम करेगी ।
तब तक, रोहन ने अपना रुमाल बढ़ा दिया ..
पूरा मुँह अच्छे से पोंछने के बाद सोहन ने बस्ते को पोछा फिर उसी कपड़ा बन चुके रुमाल से पेंट साफ की और वह रुमाल नुमा कपड़ा रोहन को लौटा दिया ..
रुमाल की हालत देख रोहन ने नाक फुलायी फिर पैर को कुछ टेड़ा किया दो उगलियां सोहन को दिखायी और अमिताभ बच्चन स्टाइल में बोलाः
'आज आप लंच नहीं करेंगे
आपके लंच पर अधिकार हमारा होगा ... । . हअ । . '
दोनों दोस्तों ने जोरदार ठहाका लगाया, रोहन ने हाथ घुमाकर शर्ट से ही मुँह पोछा ।
लंच के समय में सोहन की माँ के हाथ की वेज बिरयानी की खुश्बू याद करते हुए रोहन ने कक्षा में पहले प्रवेश किया ।
सोहन को रोहन के टिफिन में रखे आलू पराठे याद आए और उसने रोहन को ढकेल कर कक्षा मे पहली सीट पर अधिकार जमा लिया ।
रोहन दो मिनट खड़ा रहा फिर सोहन को हल्का धक्का देकर उसी के पास उसी सीट पर जम ( बैठा )गया ।
आज बारिश ने ठान रखा था कि सोहन - रोहन को स्कूल पहुंचाना है।
सुबह से जारी पानी की फुर् - फुर् ( पतली बूंद वाली धीमी बारिश ) दोनों के स्कूल के भीतर जाते ही तेज मूसलाधार बारिश में तब्दील हो गयी ।
तेज होती बारिश ने दोनों के इंटरवल ( खाने का समय ) की योजना को धाराशाही कर दिया ।
सब बच्चों ने अध्यापक की निगरानी में कक्षा में ही अपना अपना भोजन किया ।
स्कूल की छुट्टी हो चुकी थी, स्कूल का खेल का मैदान कक्षा दो का बच्चा डूब जाए, इतने पानी से भर गया था ।
उस मैदान को पारकरके ही स्कूल के दरवाजे तक जाया जा सकता था ।
सभी बच्चों को बरामदे में ही रोक दिया गया । सभी अध्यापक स्टाफ रूम में भीतर बैठे थे ।
कुछ दूरी पर स्थित चाय की गुमटी से आयी चाय और भज्जियां के मजे सभी अध्यापक ले रहे थे ।
रोहन ने सोहन से पूछा :
चाय कैसे आ गयी ?
अन्य सभी बच्चों की तरह ललचायी नजरों से भज्जियां को देखते हुए सोहन ने उत्तर दिया :
' पता नहीं ? '
सामने डरावनी शक्ल इख्तियार करता भरा पानी, लगातार होती बारिश, पेट में कूदते चूहे और चटपटे खाने को तड़पती जीभ ...
भीतर से आती चाय और भज्जियाँ (पकोड़ी ) की नाक में झुनझुन करती खुश्बू ..
अगर अंदर प्लेटें जल्दी खाली न होती तो होठों को बराबर शांत करती जीभ हार जाती और आज, शायद स्कूल में कोई क्रांति हो जाती ।
सोहन से रोहन की हालत देखी नहीं जा रही थी । वह जानता है कि रोहन चाय का शौकिन ही नहीं, दीवाना है और आंख मूंद कर बराबर चाय के ख्यालों में गुम है ।
पानी थम चुका है, पर, पानी निकलने में अभी कम से कम एक घंटा लगेगा ।
सोहन का हाथ बार बार अपनी पेंट की जेब में जाता फिर वह हाथ बाहर निकाल लेता । रोहन ने एक बार इशारे से पूछा भी :
' कुछ है क्या ? '
सोहन ने ' न' में गर्दन हिला दी ।
रोहन का सूखता मुंह देख आखिर सोहन का दिल पसीज़ गया । उसने एक पान पसंद टॉफी रोहन की ओर बढ़ा दी ..
रोहन की बाँछे खिल गयी जोर से बोला :
' अरे यार ! .. '
सोहन ने अपने हाथ से उसका मुंह बंद किया ..
- यही तो चाहिये थी ' ..
रोहन ने आवाज़ धीरे करके बोला ।
दोनों ने इधर उधर देखा चुपके से खिसकते हुए दो सीढ़ी उतर चुके पानी के नजदीक पहुँच, दोनो ने अपने पैर पानी में डाल दिए ... ... जैसे नदी के सौम्य तट पर पैर डाले मौसम का मज़ा ले रहे हो |
मुंह में हौले हौले घुल रहा पान का स्वाद, (टाफी ) दोनों ने एक दूसरे के गलबांहें ( गले में हाथ डालना) डाल दी थीं जैसे ..... ... ... गोवा के तट पर सांसारिकता छोड़ दो वितरागी योगी बैठे हों ।
करीब एक घंटे बाद दोनों थके कदमों से घर को चलें ।
स्कूल से घर के बीच
रास्ते में एक बड़ा ही सुन्दर और बड़ा मन्दिर स्थित था ।
जो बात इस मन्दिर को अन्य मंदिरों से अलग करती थी वह थी .. मंदिर में आमने सामने स्थित दो दरवाजे जो बिलकुल भिन्न क्षेत्र में खुलते थे, इस तरह पैदल जाने वाले और कभी कभी मौका मिल जाने पर साइकिल सवार भी इस मंदिर का प्रयोग शार्टकट रास्ते की तरह करते ।
उस दिन भी लंबा रास्ता न जाकर दोनों ने मंदिर में दौड़ लगा दी और हमेशा की तरह पुजारी जी उनके पीछे पीछे चिल्लाते हुए भागे .....
अरे ! यह मंदिर है कोई रास्ता थोड़े है .. I
हमेशा की तरह पुजारी जी को अनसुना करते हुए, होने वाली अनहोनी से बेखबर दोनों दोस्त मंदिर के बाहर की सीढ़ियाँ तेजी से उतरते चले गए ।
आखिरी सीढ़ी पर पहुंचते ही सोहन ने तेज आवाज लगायी ...
रुक रोहन - रुक ...
पर तब तक रोहन, सीढ़ी के नीचे की फिसलन में फिसल गया उसका बस्ता एक झटके में हाथ से निकल बाई और बहते बड़े गंदे नाले में उछल गया ...
इधर सोहन का भी पैर फिसला जबतक वह संभल कर उठता रोहन बस्ते को बचाने आगे बढ़ गया ।
घबराहट में संतुलन बिगड़ा, बरसात की गीली दलदली मिट्टी ने स्केटिंग की तरह उसे सीधे नाले में पहुँचा दिया ... ??
दोनों आते जाते रामजी को प्रणाम जरूर करते थे, शायद उन्हीं की कृपा थी कि बारिश के पानी से उफनाते नाले में गिरते गिरते रोहन के हाथ में, कोने में निकला एक छोटा पत्थर आ गया ।
थकान, भूख, भय, आतंक ... रोहन की हिम्मत जवाब दे रही थी . I
अन्तिम सीढ़ी पर खड़ा सोहन और पहली सीढ़ी पर खड़े पुजारी जी और अन्य, उसे बराबर हिम्मत बनाए रखने को कह रहे थे।
पंडित जी बोले, बेटा ! डरो नहीं, रामजी के द्वारे खड़े हो, तुम्हारा बाल भी बांका नहीं हो सकता ...
रोहन धीरे-धीरे हिम्मत छोड़ रहा था, नाले के पानी का तेज बहाव बराबर उसे अपने साथ बहा ले जाने की पुरजोर कोशिश कर रहा था ।
बहाव से दाएं बाए होता रोहन के कमर का हिस्सा सुन्न होता जा रहा था, हाथ की ऊंगलियां भी ठंडी होकर कभी भी पत्थर को छोड़ सकती थी, उसका चेहरा फक्क से सफेद होता जारहाथा ।
उसने पूरी हिम्मत बटोरी .. सोहन ....
पर आवाज़ इतनी धीमी थी कि शायद लक्ष्य (सोहन ) तक न पहुंची .. पर,
दिल की बात सुनने के लिए दिल चाहिए, आवाज़ नहीं ।
अचानक खटाक की आवाज हुयी .
सोहन ने मंदिर के कोने में लगे एक डंडे पर बस्ता फ़ंसाया, उससे पेंट की बेल्ट बांधी और बारिश से ढीले हो चुके दूसरे डंडे को उखाड़ कर रोहन के सामने की दलदली मिट्टी में गाड़ दिया ।
जब तक कोई कुछ समझता तब तक सोहन उस गाड़े गए डंडे को पकड़ नाले की ओर लेट गया ..
तेज आवाज लगाकर उसने कहा :
रोहन मेरे भाई, जल्दी मेरे पैर पकड़,
सेकेण्ड के हजारहवें पल में रोहन ने सोहन के ऊपर छलांग लगा दी ..
उस क्षण कुछ भी हो सकता था ...
पर जिस डण्डे को सोहन ने पकड़ा था वह मिट्टी को चीरता नाले की ओर तेजी से खिसकने लगा ..
प्रभु की माया अपरम्पार ..
ऊपर से आवाज लगाते पुजारी जी कब नीचे की सीढ़ी पर आ गए किसी को भान नहीं हुआ ।
उन्होंने डंडे में बंधी बस्ते की डोरी को खींचना शुरु किया .. बस्ते की डोरी चीरती हुयी फटने लगी,
पंडित जी को फिसलते देख मंदिर की भीड़ पुजारी जी को पकड़ने दौड़ी ..
अगर मिट्टी फाड़ता डण्डा मुहाने को चीर देता तो भयावहता का अंदाजा लगाना मुश्किल था ।
एक हाथ से दो, दो से चार, चार से आठ हाथ जुड़ते गए ..
पूरी तरह से टूटे दो शरीरों को खींच कर बचा लिया गया था ।
दोनों दोस्तों को मंदिर में बैठाकर प्रसाद और पानी दिया गया ।
पुजारी जी ने मंदिर के घंटे बजाकर प्रभु राम को धन्यवाद दिया।
तब तक रोहन के माँ - बप्पा समाचार पाकर आ गए थे .. ।
बप्पा ने पुजारी जी की धन्यवाद कहा तो पंडित जी बोले : धन्यवाद कैसा?
मेरे लल्ला के द्वारे अनहोनी होती तो मुझ पर लांछन न लगता ? मैंने
प्रभु की सेवा की है।
माँ ने रोहन के साथ सोहन को भी गले लगा लिया । रोहन रुआंसा होकर बोला :
माँ. बस्ता ..
माँ ने कनखियो से बप्पा की ओर देखा ..
बप्पा : ' नया बस्ता आ जाएगा, मेरा राजा बेटा ! तेरा बप्पा लाएगा ।
रोहन : (धीरे से ) नहीं चाहिए बस्ता .. I
बप्पा : अच्छा मेरे बाप ! तेरे दोस्त के लिए भी बस्ता लाऊंगा बिल्कुल तुम्हारे बस्ते जैसा बस्ता।
आज सोहन को रोहन के माँ -बप्पा दोनों के हाथ आशीर्वाद प्रदान करते हुए आशीष दे रहे थे।
दो दोस्त मन में नए बस्ते की छवि लिए हाथ पकड़ जीवन डगर में आगे बढ़ चले।