VEENU AHUJA

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4.5  

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भूल की सजा

भूल की सजा

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सात बजे का समय .. कोहरे ने ज्यों सूरज को चुनौती दे डाली थी ..दृश्यता . बहुत कम थी ,दरवाजे के खोलते ही ठंडी हवा भीतर आने की हठ कर बैठी ..

पीछे से निशा ने रजाई के भीतर से ही आवाज़ लगाई ..

" आई .. (माँ)आ आ ई ई ..दरवाजा .."

"हां हां .. दरवाजा उड़का कर बाहर ही खड़ी हो गयी ..कोहरे के पीछे देखने के प्रयास में समय के पीछे पहुंच गयी ..ऐसी ही एक सुबह .. जब पूरे दिन होने को थे ..वर्मा भाभी बड़े दुःखी चेहरे के साथ यहीं से गुजरी थीं .."


हमेशा की तरह मैंने बोला .."हरी ओडम .. और सब ठीक ? बिटिया कैसी है ?"


आवाज के साथ वो ठिठकी ..उनकी पनीली आंखें देख मैं सहम गयी .."क्या हुआ भाभी ?बिटिया ठीक है न ?"


"हां , दूसरी भी लड़की हुयी है .." (दर्द में डूबी आवाज़ )


"तो .. क्या हुआ ..आजकल तो देखे ,लड़के भी बाहर रहते है .. लड़का लड़की एक बराबर .."


अनसुना करते हुए ...." सोचा था .. एक लड़का होता ..उसकी जिठानी को भी जोड़ा है एक लड़के और एक लड़की का .."


"अरे ! परेशान न हो .. हम भी तो तीन बहनें हैं .."

उन्होंने जारी रखा .."कहाँ कहाँ माथा नहीं टेका था ..कौन से मंदिर नहीं गयी ?कह रही थी आपरेशन कराके मुक्त हो जाती ?"


"तो , आपरेशन कराया ?"

"नहीं .. लड़का होता तो ..अरे मुन्नी बराबर कहती रही ..काका आएगा ..साईबाबा बाबा ही देना ..मैं उसे राखी बांधूगी ...ईश्वर ने उस छोटी बच्ची की न सुनी "..व्यथा को शायद व्यथा हर ले , सोचकर मैं बोली .."सही बात बच्ची की ही सुन लेते भगवान .."


"बस , बेटी यही सोचती है कौन सी भूल की सजा मिली ?जाने क्यों ?"


मैने दुपट्ठा आगे किया .."उस नयी नन्हीं कली का क्या कसूर ??आहलादित गोद के झूले से भी वंचित ??"


.. मैं भीतर आ गयी ..वर्मा भाभी फिर कभी खुश न दिखी ..


मैं उन्हें देखती और उभरे पेट पर प्यार से हौले से हाथ घुमाती ...निश्चिंत रहो ...भीतर , जो भी है उनकी माँ उनका स्वागत करने के लिए तैयार खड़ी है ..

पूरे सम्मान और प्यार और हिम्मत के साथ ....


बेटी का बीटेक का आखिरी साल है .... कुछ नौकरी के ऑफर आए है ..


"अरे ! येतो वर्मा आण्टी चली आ रही .."कंधे थोड़े झुके , चाल में थोड़ी लड़खड़ाहट ..

"हरी ओडम भाभी .. कैसी हैं ?"

आदतन मैंने बोला .."हरी ओडम" .. पास आकर प्यार से सिर पर हाथ रखा .

"सब ठीक है न भाभी .."

"हां ' सोनी ( बेटी की बेटी .. नन्हीं कली ) के साथ कल ही चार धाम की यात्रा करके लौटी हुई ..पगली ने पहली सैलरी मेरे ऊपर ही खर्च कर दी .."

संतुष्टि के भाव के साथ बोलीं .."भगवान खुश रखें उसे ..ऐसी नन्हीं कलियां हर घर में खिले ।"


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