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Pawan Gupta

Horror Thriller

4.3  

Pawan Gupta

Horror Thriller

भिखारी बाबा

भिखारी बाबा

9 mins
983


मैंने कल ही अपना रूम दूसरी जगह शिफ्ट कर लिया, क्योंकि मेरा ऑफ़िस पहले वाली जगह से 10 किलोमीटर दूर था। पर ये रूम मेरे वर्क प्लेस से महज ही 3 किलोमीटर के आसपास होगा, किराया भी पहले वाले से कम था और सोसाइटी भी ठीक थी। मैं कल ही अपना सारा सामान ले आया था, सामान में था ही क्या। अकेला रहता हूँ, तो बस एक कपड़े से भरा बैग और कुछ सामान। मेरा नया रूम तीसरे माले पर है, और वो आखरी माला है। आज जब मैं ऑफ़िस के लिए निकला तो मुझे गली के मोड़ पर एक आदमी दिखा। मुझे ये नहीं पता की वो आदमी भिखारी था या पागल। पर मुझे ही बहुत अजीब तरह से घूर रहा था , और जब मैं शाम को ऑफिस से घर आया तो भी वो मुझे गली के बहार ही मिला, वो मुझे देख एक अजीब डरावनी हँसी हँस रहा था।

उसने काले ढीले कपड़े पहने थे, जगह जगह फटे हुए कपड़ो पर रंग बिरंगे पैबंद लगे हुए थे। सर्दियों में हाफ पेंट , और दांत काले सफ़ेद की बीच की हालत में थे। कई दिनों से वो नहाया भी नहीं होगा, बाल उसके एकदम घुंगराले एक दूसरे से चिपके हुए से थे, भिखारियों जैसी हालत तो थी, पर भीख मांगते नहीं देखा था मैंने उसे। शायद वो पागल हो ,जब से बिस्तर पर पड़ा हूँ, उसी की शक्ल दिमाग में घूम रही है।

    

मैं अगली सुबह फिर ऑफ़िस के लिए निकला, तो वो फिर मुझे गली के बहार ही मिला। उसने अपनी गर्दन को हल्का सा टेढ़ा करके मुस्कुराया, उसकी मुस्कराहट आम नहीं थी, ऐसा लगा मानो उसके दिमाग में कुछ चल रहा है। मैं समझ गया था कि ये आदमी भिखारी नहीं है, ये पागल है , और पागलो का क्या भरोसा कही बिना बात के पत्थर मार दे या हमला कर दे। उसके बाद से मैं उस रस्ते में सावधानी से गुजरा करता था, हमेशा मेरी नज़र उसपर रहती।

जब भी मैं बहार जाता या वापस आता तो पूरा ध्यान रखता कि मेरे साथ कोई अनहोनी ना हो जाये। वहां रहते रहते तक़रीबन 5 दिन बीत गए थे, कि एक दिन मैं ऑफ़िस के लिए निकला, और गली के मोड़ तक पहुंचा पर वहां वो पागल दिखा ही नहीं, मैंने अपनी नजर आस पास दौड़ाई पर कोई फ़ायदा ना हुआ, मैं भी जल्दी - जल्दी में ऑफ़िस निकल गया। शाम को जब मैं ऑफ़िस से वापस आया तो उसे मैंने गली के बहार एक कोने में सोया हुआ पाया दर्द से तड़प रहा था, सर पर चोट लगी थी। लोगो से मालूम हुआ कि एक कार वाला ठोकर मार गया है , सर पर पट्टी वहीँ के लोगो ने करवा दी थी। मेरे दिल में पता नहीं कहाँ से उसके प्रति सहानुभूति पनप गई और मैं उसके दुःख को सुन दुखी हो गया। मैंने सोचा आज आराम कर रहा है ,तो करने देते है ,कल सुबह उसके पास जाऊंगा। रात को बिस्तर पर पड़े - पड़े नींद नहीं आ रही थी ,बस दिमाग में वही पागल घूम रहा था, कौन है वो यहाँ क्यों है,अगर पागल है तो पागलखाने में क्यूँ नहीं है, उसकी जिंदगी तो ऐसे सड़क पर खतरनाक है, कोई भी मार के चला जायेगा, ईश्वर इतनी तकलीफे क्यूँ देता है , इंसान को।यही सब दिमाग में चल रहा था, यही सब सोचते - सोचते पता नहीं कब नींद आ गई और मैं सो गया। अगली सुबह नींद खुली तो फटाफट तैयार हुआ, लंच तैयार किया,और ऑफ़िस के लिए निकल गया, आज मैंने एक एक्स्ट्रा खाने की पैकेट लिया था, उस पागल के लिए। मैं गली के बहार पहुंचा , वो वहीँ सड़क के किनारे लेटे हुए थ, मैं उसके पास गया, उसको जगाया, मेरे मन में बहुत डर था कि क्या पता वो कुछ ना करे। पर मेरे उठाने पर वो नोर्मल्ली उठ गया मैंने उसे खाने का पैकेट दिया, रोटी सब्जी तुरंत उसने पैकेट खोल के खा लिया फिर उसके पास पड़ी बॉटल से उसने पानी पिया। उसके बाद उसने मेरी तरफ ध्यान से देखा। उसकी आँखों में दर्द उतर आया ,उसने अपने हाथों को मेरे पैरों की तरफ कर कई बार प्रणाम किया, उसका गाला रुंधने लगा था।

 उसकी हालत को देख कर मुझे भी बहुत पीड़ा हो रही थी, थोड़ी देर बाद मैंने उससे पूछा बाबा ये चोट कैसे लगी। वो बोला मैं सड़क पार कर रहा था, तो एक गाड़ी वाले ने ठोकर मार दी सर पत्थर से टकरा गया, फिर लोगो ने मुझे अस्पताल ले जाकर पट्टी करवा दिया।

बाबा आप यहाँ ऐसे क्यूँ हो,आप कौन हो आप भिखारी हो।

 बाबा -( हँसते हुए पर आँखों में आँसू भरे हुए ) 

 मैं भिखारी नहीं हूँ, और ना मैं पागल हूँ, तुम जिस घर में रहते हो वो मेरा ही घर था। बड़ी मुश्किलों से उस घर को मैंने बनाया था,  हमारा एक छोटा सा परिवार था, मेरी पत्नी सुलोचना और बेटी नैना। मेरा एक दोस्त भी था रमेश। वो हमारे फॅमिली मेम्बर की तरह ही था ,वो मेरे घर हमेशा ही आता। मैं थोड़ा सीधा था लोगो पर आसानी से विश्वास कर लेता था। मेरी लाइफ बहुत अच्छी चल रही थी, टूर एंड ट्रेवल का बिज़नेस था ,नैना टूर एंड ट्रेवल। सब बहुत अच्छा था, एक दिन मुझे 7 दिन के लांग टूर का काम मिला। मैं घर पर अपनी बच्ची नैना और पत्नी सुलोचना को छोड़कर टूर पर कस्टमर को लेकर चला गया। जाने से पहले पत्नी से कहा मैंने कि नैना का ख्याल रखना, और कोई बात हो तो मुझे फ़ोन कर लेना। ये सब बोलकर मैं सुबह 5ब जे ही निकल गया।  

मैं अपनी बेटी नैना से बहुत प्यार करता था, पर उस दिन 5 बजे नैना सो रही थी, तो उसे जगाना मैंने उचित नहीं समझा ,और उससे बात किये बगैर ही मैं सुबह अपने काम पर निकल गया। आज इतने दिनों में पहली बार नैना को छोड़ कर जाना ठीक नहीं लग रहा था। हमेशा कार चलाते समय नैना की मासूम शक्ल आँखों के सामने आ जाती। मन भी बेचैन था, पर काम तो काम होता है, मैंने अपने मन को संभाला और काम पर ध्यान देने लगा। उनको जहाँ जहाँ जाना था , ले गया 7 दिन बाद जब मैं घर आया, घर का माहौल कुछ और था। मेरा ये घर मेरी पत्नी सुलोचना के नाम था। जब घर आया तो पता चला ये घर बिक गया है,और मेरी फूल सी बच्ची की लाश इस घर के तीसरे माले के रूम में पड़ी मिली। ३ दिन बाद पता चला था कि उस रूम में मेरी बेटी की लाश है!

और मेरी पत्नी सुलोचना नैना को खाने में जहर देकर उसी रूम में बंद कर दी थी, और इस घर को किसी को बेचकर रमेश और सुलोचना दोनों कही ग़ायब हो गए है। ये सारी बातें 7 दिन के बाद घर आने पर पता चला ,उससे पहले किसी ने मुझे कोई कॉल नहीं किया ,( ये बोलते -बोलते वो फफक फफक कर रोने लगा )  हाय.. मेरी 7 साल की बेटी नैना ....  

उसकी कहानी और उसका दर्द सुनकर मेरे रोंगटे खड़े हो गए , ये सब इस दुनिया में क्या -क्या होता है। मैंने उसके कंधे पर हाथ रखकर उसको चुप करता रहा पर वो फफक फफक कर रोता रहा,वो चुप नहीं हो रहा था। मुझे भी उनसे बहुत सहानुभूति थी ,उनकी कहानी सुन के मेरे भी आँसू आ गए थे ,पर मैं कर भी क्या सकता था ,तभी उस भिखारी बाबा ने मुझे देखते हुए अपने आंसूओं को रोका और बोलने लगे ,कि तुमने मुझसे पूछा था न कि बाबा आप यहाँ क्यूँ हो कैसे हो ,तो सुनो। मैं ना ही पागल हूँ और ना ही भिखारी हूँ , मुझे इस घर से बहुत प्यार है ,क्युकी मेरी बेटी नैना यही रहती है, मैं उसे यही देखता हूँ ,इसलिए मैं यहाँ इस हालत में पड़ा रहता हूँ ,एक बार मैं नैना को खो चुका हूँ , दोबारा नहीं खोना चाहता।  इसलिए नैना के लिए मैं इस हालत में यही पड़ा रहता हूँ ,लोग मुझे पागल समझते है ,इसलिए वो मुझे अंदर भी नहीं आने देते। जिस कारण मैं इसी सड़क पर पड़ा रहता हूँ और यही से मैं अपनी नैना को देख लेता हूँ।

मैंने पूछा बाबा नैना तो मर चुकी है न ...आपने ही बताया था, फिर आप कहाँ और किसे देखते हो ? भिखारी बाबा - बेटा नैना उसी रूम में है,जिस रूम में तू है , ये बात बोल के वो भिखारी बाबा हँस पड़े। मैं तो डर के मारे सुन्न पड़ गया, ये क्या शुरू हो गया अब। मेरी लाइफ में वैसे ही परेशानियाँ कम थी , जो अब ये। डर तो बहुत था फिर भी मन को समझते हुए ये मान लिया कि आज के टाइम में ये सब काल्पनिक बातें है ,इनपर ध्यान नहीं देना चाहिए। मैं कितना भी मन को मनाऊ मन कहाँ मानने वाला था ,डर के मारे हालत पतली हुई पड़ी थी। मैंने कहा अच्छा बाबा मैं चलता हूँ ऑफ़िस के लिए लेट हो गया हूँ ,मैं सच में बहुत लेट हो गया था ,आज हाफ डे की ही शिफ्ट होनी थी मेरी। फिर से भिखारी बाबा ( मुस्कुराते हुए बोले )  बेटा ... तू डर गया न ....

मुझे उसके मुस्कराहट पर अब गुस्सा आया ..मैंने कहा नहीं बाबा....मैं नहीं डरता बस मैं ऑफिस के लिए लेट हो गया हूँ , मैं चलता हूँ ...

ये कहकर मैं ऑफ़िस के लिए निकल गया। मैं ऑफ़िस देर से पहुंचा ,डॉट भी पड़ी ,पर सबसे बड़ी बात कि उस भिखारी बाबा की बातें दिमाग से निकल ही नहीं रही थी।

शाम हुई और ऑफ़िस की छुट्टी हो गई ,पर आज मेरे कदम घर की तरफ बढ़ ही नहीं रहे थे, हिम्मत जबाब दे रही थी ,कि उस रूम में मैं रहूं। उस रूम में तो छोड़िये मुझे तो अब उस सोसाइटी में रहने में डर लग रहा था। कहने को तो था कि मैं पढ़ा लिखा हूँ, मुझे ऐसी दकियानूसी बातों पर विश्वास नहीं करना चाहिए। पर हमारा जोर हमारे दिल दिमाग पर कब चला है , डरते - डरते आखिर कार मैं घर की तरफ निकल गया , क्या करता और कोई चारा भी तो नहीं था। मैं एक छोटी सी बात के लिए दोस्तों से भी क्या हेल्प लेता, सो मैंने खुद ही हिम्मत करके घर आ गया। गली के बाहर मैंने दूर - दूर तक देखा ,वो भिखारी बाबा आज दूसरी जगह सो रहा था। मैं झट से अपनी सोसाइटी की तरफ भागा और अपने रूम में आ गया। अब तक इस रूम में कोई डर जैसी चीज मुझे नहीं दिखी थी , और ना ही आज कुछ ऐसा था ,पर फिर भी अब उस रूम में डर लगने लगा था , पल - पल मेरा दिमाग जागरूक रहता कि कोई अनहोनी ना हो। मन में वो नैना शायद घर कर गई थी , मैंने रात का खाना बनाना जरुरी नहीं समझा और बहार से ही खाना आर्डर कर दिया।

खाना खा कर सोने चला गया ,पर नींद तो मुझसे कोसों दूर हो गई थी। उस भिखारी बाबा ने मेरे दिमाग में एक मरी हुई लड़की को जीवंत करके डाल दिया था। उस रात मेरे दिमाग में सिर्फ और सिर्फ नैना ही चल रही थी ........


 नमस्कार दोस्तों ये कहानी आपको कैसी लगी इस कहानी का अगला भाग ( वो कौन थी )

    

                  


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