Pawan Gupta

Tragedy Inspirational

4.2  

Pawan Gupta

Tragedy Inspirational

मृत्यु

मृत्यु

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मृत्यु एक ऐसा सच है जिससे कोई अगर चाहे तो भी वो मुंह नहीं मोड़ सकता है। हर इंसान जिसने धरती पर जन्म लिया है, एक न एक दिन दुनिया को अलविदा कहकर जाना ही होगा। जब तक जीवन रहता है तब तक हर व्यक्ति निरंतर अपनी अपनी क्रिया करता है। यही क्रिया व्यक्ति के कर्मों का निर्धारण करती हैं। जिसने अपने जीवन में अच्छे काम किये होते हैं उसे मृत्यु के बाद उसके अच्छे कर्मों के हिसाब से स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है। वहीं जिसने अच्छे कर्म नहीं किये होते हैं, उन्हें मृत्यु के बाद अपने कर्मों का हिसाब देना होता है और मृत्यु के बाद उनकी दशा अच्छी नहीं रहती है। मृत्यु के बाद ऐसे लोगों को नरक लोक की प्राप्ति होती है। इसीलिए आपने अक्सर अपने आसपास लोगों को ये कहते हुए सुना होगा कि जब तक जीवन है तब तक अच्छे कर्म करके पुण्य कमा लो।

अलग अलग धर्मों में कर्मों को लेकर अलग अलग मान्यता है। वहीं मृत्यु को लेकर भी हर धर्म के अपने अलग अलग रीति रिवाज हैं। अगर बात करें हिंदू धर्म की तो हिंदू धर्म में अगर परिवार के किसी भी सदस्य की मृत्यु हो जाती है तो उसके बाद उसका अंतिम संस्कार उसकी संतान के द्वारा किया जाता है। जब किसी व्यक्ति संतान नहीं रहती है तो ऐसी दशा में परिवार के ही किसी सदस्य को अंतिम संस्कार की विधि को पूरा करना चाहिए। ऐसा करने से उस व्यक्ति को सदगति की प्राप्ति होती है। लेकिन कई बार ऐसी स्थिति भी हो जाती है कि पारिवारिक जन मृत्यु के बाद मृतक के पास नहीं मौजूद होते हैं और तुरंत अंतिम संस्कार को किया जाना संभव नहीं होता है। इस स्थिति में मृतक के शरीर को अंतिम संस्कार होने की उचित व्यवस्था तक रखना पड़ जाता है। फिर चाहे दिन हो या रात शव को कभी भी अकेला नहीं छोड़ा जाता है। लेकिन मृत्यु के बाद ऐसा क्यों किया जाता है? क्या आप जानते हैं? आज हम आप सभी को इसी के बारे में बताने जा रहे हैं।

    लोगों के रोने की आवाज, लोगों के रोने की आवाज कानों में गूँज रही थी, रामदरस सब सुन रहे थे पर वो अभी अचेत थे उन्हें दर्द महसूस हो रहा था कई जगह सुइयाँ चुभोई गई थी की कुछ खून का सेम्पल लिया जाये पर शरीर कमजोर होने के कारण कई बार प्रयास करने पर खून के कुछ कतरे ही मिल पाए थे , जो शायद टेस्ट के लिए काफी होंगे , पर वही सुइयों की चुभन अब उन्हें महसूस होने लगी थी क्युकी करीब करीब 31 घण्टों के बाद रामदरस अब धीरे धीरे होश में आने लगा था , धीरे धीरे आँख खुली तो उसने अपने पास अपनी पत्नी सावित्री को देखा और फिर उसे महसूस हुआ की वो अब घर में नहीं अस्पताल में किसी बेड पर पड़ा है पास में बहुत से मरीज पड़े कराह रहे है , उन्हीं कुछ पलो में रामदरस को सब याद आ गयाI

    आज कई दिनों से रामदरस बीमार थे , नसें सूखती जा रही थी दीवारों को पकड़ कर चलना भी मुश्किल हो गया था ,कई बार चल न पाने की हालत में गिर कर चोट लगवा बैठे थे ,शरीर ने तो करीब करीब साथ छोड़ ही दिया था , बस अपनी आत्मशक्ति के बल पर ही जी रहे थे हालत इतनी गंभीर थी की खुद से पैनट भी पहनना मुश्किल था, घर के सभी लोग उनसे कहते डॉ. के पास चलो तो वो हर बार बात को टाल जाते कि अभी नहीं... समय आएगा तो मैं खुद ही चला जाऊंगा I

   आज वो समय आ गया था ,आज वो अस्पताल में असहाय अवस्था में पड़े हुए थे , उनकी पत्नी सावित्री के आँखें आँसुओं से डूबी हुई थी , वो अपने हाथों और पैरो को हिला पाने में भी असमर्थ थे , उनके मुँह में एक लम्बी पाइप डाली गई थी जो उन्हें जिन्दा रखने के लिए ऑक्सीजन पहुंचा रही थी, आज वो बहुत कुछ कहना चाहते थे पर वो कुछ बोलने की हालत में नहीं थे , वो लेटे - लेटे अपनी बीती हुई जिंदगी की यादों में डूब गए , जब वो तीन साल के थे तो उनके पिता श्यामबाबू उनके लिए नए कपडे लेके आये है ,उन कपड़ों को देख रामदरस के आँखों में आंसू और चेहरे पर मुस्कान कौंध गई , ये जीवन का एक मात्र ऐसा पल था जिसमें आंखों में आंसू और चेहरे पर मुस्कान थी , शायद कुछ ऐसा जैसे सब कुछ पा लिया हो और सब कुछ खो दिया हो , इस पल को तो कोई भी बस महसूस कर सकता है बयां करना जरा मुश्किल है , रामदरस के आँखों के सामने तीन साल का रामदरस और उसके पिता की तस्वीरें कुछ यूं चल पड़ी जैसे कि वो कोई फिल्म देख रहे हो , वो पिता के गले लगना वो अपनी तोतली आवाज के साथ बाबूजी बाबूजी बोलना सब उनकी आखों के सामने था , कुछ ही पल में रामदरस को नज़र आया कि अब वो पांच साल के है और बाबूजी आज मेरे लिए लकड़ी की बनी चार पहिये वाली गाड़ी लाये है , मैं बहुत खुश हूँ पड़ोस के मनमोहन ,रंजन ,सीताराम सब दोस्त उसके पास आये है और उसकी चार पहिये वाली गाड़ी की तारीफ कर रहे है , ये सब देख फिर से रामदरस के चेहरे पर हसी आ गई I

   इसी प्रकार उसके बीते सारे पल किसी सिनेमा की तरह चलते रहे , कभी अपने एग्जाम रिजल्ट के दिन का डर या कभी पिता से पड़ी डाट सब सामने थी ये सब देखते - देखते उसकी यादों में वो पल भी आ गया जब वो पहली बार अपनी पत्नी सावित्री को देखने गया था , राम दरस ने उस दिन सफ़ेद कुर्ता पैजामा और कुर्ते के ऊपर नेहरू जैकेट पहन के गया था , मन के अंदर सावित्री को देखने के कोतुहल से उसके मन में बिजली सी कौंध जाती    मनोदशा तो कुछ ऐसी थी कि चेहरे पर हँसी आने को है पर बड़े बूढ़ों के सामने गंभीर बने बैठे हो पर उनकी नजरे कुछ ढूंढ रही थी पर बिना किसी हरकत के जैसे की मानो कोई चोर चोरी करना चाहता हो और उसकी चोरी का किसी को पता न चले , वह बरामदे में बैठे सावित्री के रिश्तेदार और अपने परिवारजनो के बीच बात चीत का सिलसिला चलता रहा बीच बीच में सामने पड़े समोसे मिठाइयों की तरफ इशारा करते हुए सावित्री के पिता ने कहा ''रामदरस बेटा कुछ तो लो सरमाओ मत '' तभी उनके पिता श्यामबाबू उनको छेड़ते हुए बोले ले ले बेटा आगे तो बीबी की ही चलेगी '' इसी बात पर सब हंस पड़ते है और रामदरस अपनी हँसी को रोकता हुआ एक हलकी मुस्कान के साथ उन लोगों के मज़ाक का स्वागत करता है,

    कुछ ही समय बाद हाथ में चाय की प्लेट थामे सावित्री अपनी माँ के साथ बरामदे में आई , सावित्री के आते ही रामदरस के मन में उत्सुकता ने अपना धावा बोल दिया, वो अपने मन को संभाल नहीं पाया और अपनी कनखियों से सावित्री को देख ही लिया , पहली नज़र में सावित्री कुछ यू नज़र आई रामदरस को जैसे की उसके सोच में समाई उसकी महबूबा से मिला हो I

     पिली साड़ी में लिपटी सावित्री बहुत ही खबसूरत दिख रही थी, उसकी साड़ी के किनारे लगी सुनहरी पट्टिया उसके गहनों के साथ मिलकर उसके रूप को खूब निखार रही थी ,उसके कानों की बालियाँ हिल हिल कर कुछ इस तरह गालों को छू रही थी मानो की बालियाँ उसकी गालों को चूम रही हो , सर पे पल्लू लिए सावित्री जब बरामदे में आई तो उसकी खूबसूरत नर्म गुलाबी होठो पर फ़ैली हलकी मुस्कान मानो रामदरस के सीने को छलनी कर गई ,उसकी गहरी काली काजल में डूबी आखों में रामदरस खुद को डूबने से बचा न सका रामदरस ने तो उसी पल अपना दिल हार बैठा , रामदरस की धड़कने बहुत तेज़ चल रही थी, और वो सावित्री के खूबसूरती में कही खो गया था , इतने में एक खूबसूरत हाथ चाय की एक प्याली लिए रामदरस के पास आई और साथ में एक बहुत ही सुरीली आवाज रामदरस के कानों में गूंजी “चाय ले लीजिये” , आवाज को सुनते ही वो अपने विचारो के समुन्द्र से बहार निकला और तभी पहली बार रामदरस ने पूरी तरह से सावित्री को देखा और पहली नजर में देख कर उसे अपने मन मंदिर में बसा लिया I

   आज फिर वो पल अस्पताल में लेटे लेटे रामदरस के आखो के सामने से गुजर रहा था , हर एक पल उसे आज नज़र आ रहा था कब उसका पहला बीता राजीव इस दुनिया में आया कैसे बड़ा हुआ उसका रोना हँसना वो जिद करना सब उसकी नज़रों के पास ही बीत रहा था , वो अपनी जिम्मेदारियों के चुंगल में कुछ यूँ फंसा की अपने लिए कुछ फुर्सत के पल भी न संजो सका, कभी बच्चों की पढ़ाई तो कभी दवाई कभी रिश्तेदारी में परिजनों के बारे में सोचते सोचते खुद के लिए सोचना ही भूल गया आज अस्पताल के बेड पर आज उसे सुकून मिला अपने बारे में सोचने का जब वो कुछ कर ही नहीं सकता,

   ये सब सोच के उसके आँखों की किनारियाँ गीली हो गई और एक आँसू की कतार आंखों से निकलकर गालों को भिगाती हुई बेड पे पड़े चादर में समां गई, क्या यही जिंदगी है , हमने किया क्या ? बस भीड़ में दूसरों के संग भागते रहे रेस लगाते रहे , हम सब एक दूसरे से आगे निकल जाना चाहते है पर सब भाग कर एक ही जगह पहुंच जाते है अपनी आखरी मंजिल मौत तक.... फिर इससे आगे का रास्ता किसी को कहा पता होता है जिंदगी हर इंसान लड़ता झगड़ता है कभी रोटी की आड़ में कभी जमीन और प्यार की आड़ में और जब भगवान इंसान को सब दे देता है तो इंसान खुद को इंसान न समझकर भगवान मान बैठता है , और उस ईश्वर की बनाई खूबसूरत रचना इंसान को अपने ताकत और पैसे के बल पर नचाने लगता है पर ये भूल जाता है की मौत सच है वो भी इस रेस में वही पहुंचेगा जहां सब पहुंचते है सबकी एक ही दशा होनी है I

   रामदरस को जीवन की गहरे रहस्यों की अनुभूति होने लगी अब उसे महसूस होने लगा की ये सब मोह माया है और लोग इस माया में अपनी मृत्यु के आने तक फंसे रहते है, इन्हीं अनुभूतियों में घिरे रामदरस को महसूस हुआ की उनके आसपास जो भी शोर दर्द वेदना भरी चीत्कार सुनाई दे रही थी वो अब शांत हो चुकी थी ऐसा लगा की वो किसी एकांत में जा चूका हो , उसने अपनी गर्दन हिलने की कोशिश किया ,बहुत कोशिशों के बाद उसने अपने दाहिने तरफ के लोगो को देखा तो उसे सब बीमार और परेशां लोग दिखे उसकी आँखों की रौशनी भी पहले जैसी नहीं रही धीरे धीरे रामदरस को उन बीमार कुछ मरीजों के पास कुछ अजीब से दिखने वाले लोग नज़र आये कुछ के कपड़े सफ़ेद थे तो कुछ के काले दोनों तरह के लोगो के पास एक कोमन बात थी कि दोनों के कपड़े ऊपर से नीचे तक एक ही तरह के कपड़े पहने हुए थे कपड़ों का एक पर्दा चेहरे पर था जिससे उनकी शक्ल का अंदाजा नहीं लग पा रहा था और दोनों तरह के लोगो के हाथो में करीब 6 फ़ीट लम्बी लकड़ी थी और उन लोगों की लम्बाई तक़रीबन 7.5 फ़ीट होगी या इससे भी ज्यादा। ........ हां एक बात और थी जो नोटिस करने लायक थी उनके पेअर नहीं थे या तो हवा में थे ,क्युकी उनके कपड़े पूरे पैरो तक थे तब भी जमीं से ऊपर ही थे अनुमान लग रहा था कि उनके पैर नहीं थे I

अचानक से रामदरस के आंखों की पुतलियाँ सिकुड़ने लगी और आंखों की रौशनी जाने लगी , जैसे….जैसे आँखों की रौशनी जाती रही उसे लोग दिखने बंद होने लगे और वो लोग जो इस जहान के नहीं थे वो अब साफ़ साफ़ दिखाई देने लगे, अब उसकी सभी इन्द्रियों से उसका नाता टूटने लगा ,अब जहां का तहा उसका शरीर पड़ा था , उसे अब कोई अपना नज़र नहीं आ रहा था ,न ही अपनों की कोई आवाजें सुनाई दे रही थी अब तो अनजान अंधकार और अजनबी से लोग रोते बिलखते नज़र आने लगे और उन आवाजों के पीछे हुंकार भरी आवाजें भी बीच बीच में आ रही थी , उस आवाज में इतनी कठोरता थी की मुर्दो की जान भी निकाल दे I

  कुछ पल की एक दम शांति के बाद सब अंधकार में खो गया और फिर रामदरस को दो लोग दिखाई पड़े जिनके कपड़े एक सामान ही ऊपर से लेकर नीचे तक थे बस फर्क उनके रंगो में था ,एक ने सफ़ेद सूरज की रौशनी के सामान कपड़े धारण किये थे और एक ने उसके विपरीत काले अन्धकार के सामान मनो एक व्यक्ति दूसरे की परछाई हो चेहरे दोनों के ढके हुए थे दोनों ने अपनी अपनी हाथों में एक छड़ी पकड़ी हुई थी जिसका रंग भी उनके कपड़ो से मिलता हुआ था , उस घने अन्धकार में उस सफ़ेद कपड़ों वाले व्यक्ति से इतनी रौशनी आ रही थी की सब साफ़ नज़र आ रहा था , रामदरस का शरीर उसी बेड पर पड़ा था और वो दोनों उसके पैरों की तरफ खड़े रामदरस को ही देख रहे थे ,जैसे ही सब आवाजें शांत हुई ,तभी उन लोगों ने एक साथ अपने अपने दाहिने हाथ को ऊपर हवा में उठाया जिसके बाद एक अंगूठे के आकर का दीपपुंज रामदरस की शक्ल लिए उसके शरीर से निकल आया , और रामदरस का शरीर बेजान होकर बेड पर पड़ा रहा और वो व्यक्ति जो की यमदूत थे रामदरस के दीपपुंज को ले कर चल दिए और और रामदरस का सूक्ष्म शरीर अपने स्थूल शरीर को देखता हुआ यमदूतों के साथ चला गया I

    आगे आपको आत्मा की यात्रा का ज्ञान प्राप्त होगा इसका अगला पार्ट आत्मा की यात्रा जरूर पढ़े………


                    



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