नशा
नशा


हर जगह हरे रंग के परदे ,रोने कररहने की आवाज ,एक ही रूम में 11 बेड , वेंटीलेटर मशीनो की टी ...टी ... की आवाज के साथ एक कड़वी सी बदबू हवा में गूंज रही थी !
जी हां मेरी आँखे अस्पताल के एक रूम में खुली , जिसकी हालत देखकर एक अच्छा आदमी भी बीमार हो जाये , उस रूम में लोगो के तड़पने की आवाजे उनकी चीखे ,दिल चिर जाती थी , वो डॉक्टरों का मानवता को बचाने के लिए अमानवीय काम देख कर तो शरीर थर्र थर्र काँप जाता था !
डॉक्टर जब भी किसी की वेंटीलेटर पर डालता तो वो पल किसी दर्दनाक मंजर से कम नहीं होता , किस तरह एक डॉक्टर जबरडस्ती स्पेक्टूला को मुँह में लगाकर सास देने के लिए पाइप को मुँह में डालते ये देखकर मेरी आत्मा सन्न हो जाती !
वो इंजेक्शन को लगाना जैसे कोई कपडे की सिलाई में दरजी सुई का इस्तेमाल कर रहा हो ,
एक दिन में दर्जनों सुइया चुभोई जाती !
सच ही तो कहते है स्वर्ग और नर्क सब यही है , हमारे कर्मो के हिसाब से ही सब भुगतना पड़ता है ,ये अस्पताल किसी नर्क से कम नहीं लग रहा था , यार नर्क में भी तो यही हालात होते है न !
दर्द में तड़पते लोग उनका रुदन , दुःख , तकलीफे , आंसू , और उन आंसुओ को पोछने वाला कोई नहीं !
मैंने भी तो गलत काम किये थे इसलिए आज मैं इस नरक रूपी अस्पताल में हु !
ये सब मेरे अतीत के पन्नो में छिपी कालिख का असर था , जब ये सब शुरू हुआ तब तो मैं ही शहंशाह था , पर ये कैसे भूल गया की सबसे खतरनाक मौत उसी शहनशा की होती है जिसके रस्ते गलत होते है !
मैं मुकेश !शायद मैं 12 साल का रहा हूँगा ,जब मैंने अपनी पहली बादशाहत कायम करने के लिए अपने से 5 साल बड़े लड़को के साथ दोस्ती की , और उनके नक़्शे कदम पर चल पड़ा ,12 साल की उम्र में मैंने पहला सिगरेट का गश लिया !
स्वाद बहुत बुरा था, पर खुद से बड़े लड़को के साथ रहने के लिए खुद को स्ट्रांग बनाना पड़ता है ,तो धीरे धीरे आदत में शुमार हो गया !
ये तो ऐसी लत है की दिन दुनी और रात चौगुनी तरक्की करती है , ठीक उसी तरह मैं भी कब सिगरेट से बियर और कब बियर से दारु पर आ गया पता नहीं चला !
जब कुछ काम करने लगा तो ड्रग्स भी शुरू हो गया !
जब नौकरी नहीं रही तो ड्रग्स की तलब ने पहले अपने घर पर चोरी करने को मजबूर किया फिर दुसरो की घरो में भी चोरी शुरू हो गई !
चोरी के साथ बाद में सड़को पर चार दोस्त मिलकर डाका भी डालने लगे ,एक बार तो इस डाके के चक्कर में एक निर्दोष आदमी मेरे हाथों मारा गया !
ये सब पाप करते करते हमारी इंसानियत इतनी कुंठित हो गई थी कि उस आदमी को तड़पता हुआ छोड़ कर उसकी रिंग घडी पर्स और फ़ोन लेकर भाग गए !
जब कुछ भी नहीं रहा तो नशे के लिए तड़पते थे , क्या नहीं किया हम लोगो ने अपने दिमाग में अपनी बादशाहत कायम रखी पर दूसरों की नज़र में हम सिर्फ नशेड़ी ऐयाश चोर लूटेरे ही थे ,मतलब सबसे बड़े विलेन ....!
और इन सबका फल तो मिलना ही था जो तड़प दर्द हमने दुसरो को दिया था ,वही तो हमें वापस मिल रहा था ,इस सिगरेट शराब ड्रग्स ने हमसे सब कुछ लेलिया और बदले में हमें दर्द चीख पीड़ा डर और ये हॉस्पिटल का बेड दिया है !
आज मैंने जिंदगी और मौत की दहलीज पर खड़ा हु तो आज मुझे जिंदगी के इस पार क्या है और जिंदगी के उस पार क्या है साफ़ साफ़ दिख रहा है !
सही गलत का फर्क दिख रहा है , यही सचाई है जब तक शरीर में ताकत रहता है ,तब तक हमारा किया सब ठीक होता है पर जिस दिन हमारे शरीर की ताकत हमारा साथ छोड़ देती है उसी पल हमारी गलती नज़र आने लगती है !
लोग कहते हैं कि एक सिगरेट से क्या होगा , क्या बिगाड़ लेगी एक सिगरेट !
एक्चुअल में अगर एक सिगरेट से कुछ नहीं होता तो छोड़ क्यों नहीं देते लोग .,..एक सिगरेट को ...
वास्तविकता तो ये है कि सही जो भी है वो हर तरीके और हर समय में सही है ,और जो गलत है वो हर तरीके और हर समय गलत ही होगा !
आप चाहे एक सिगरेट पियो या दस पर आप को वो एक सिगरेट भी नुक्सान ही देगा क्युकी गलत सिर्फ गलत ही होता है ,
जिस दिन लोग गलत सही समझ जायेंगे तो इस नशे से आजादी मिल जायेगी ,फिर कोई मुकेश अपनी बादशाहत कायम करते करते अस्पताल नहीं पहुंचेगा ,ना ही उसके परिवार वाले परेशां होंगे ना समाज ...
मुकेश यही सब सोचता हुआ अपने दर्द को झेल न सका और इस नर्क में तीन महीने रहने के बाद एक सिख देकर चल बसा .....
बुरी चीजें बुरी होती है कम बुरी है या ज्यादा बुरी है इन बातो को सोचना मूर्खता है ,एक बार जो नशे के जाल में फस गया उसके उस जाल से निकलने के चान्सेस कम होते है !
फिर तो उनके लिए एक ही गाना बनता है ,जिस गली में तेरा दर ना हो साजना उस गली से हमें तो गुजरना नहीं....
अगर मेरी कहानी से आपको अपने परिवार और समाज की चिंता हुई हो तो कम से कम आज से ही नशा छोड़ने की पुरजोर कोशिश करे ..
नहीं तो मुकेश जैसे उदाहरण हमारे समाज में भरे पड़े हैं.....