राजू जोकर
राजू जोकर


ओये राजू आज आखरी शिफ्ट कम्प्लीट करके जाना, और जाते वक़्त अपना एडवांस भी ले जाना ...राजू के मालिक ने कहा।
राजू ने कहा - पर शाहब आखरी शिफ्ट तो 12 बजे खत्म होगी, इतनी रात को पैसे लेकर कैसे जाऊंगा,आप तो मुझे देख ही रहे हो मैं कैसा हूँ, मेरे ऊपर ही मेरी पूरी फॅमिली की जिम्मेदारी है,जल्दी छोड़ दो न साहब ...
राजू के मालिक ने कहा - मेरे ऊपर भी इस सर्कस की जिम्मेदारी है बता क्या करूँ बंद कर दूँ सर्कस .... ये बोलते हुए राजू का मालिक चला गया ....
राजू अब बहुत उदास हो गया, उसे पैसे की जरूरत थी उसकी बहन की अगले महीने शादी थी तो उसे बहुत सी चीजे खरीदनी थी,पर इतनी रात को 50000 हजार रूपये लेकर खतरे से खाली न था।
राजू सम्राट सर्कस में एक जोकर था लम्बाई महज तीन फुट रही होगी हाथ पतले और टेढ़े उसके हाथ कहुनियों से मुड़ते भी नहीं थे, सकल उदासी भरी ...उसके दिल में हमेशा एक सैलाब उठा रहता, आखिर उसने क्या गलती की ..जो ईश्वर ने उसे ऐसा बना दिया,इतना लाचार की ना जी पाए ना ही मर पाए।
अभी राजू के शो बहुत टाइम था तो वह एक किनारे बैठ कर अपना पास्ट याद करने लगा।
जब मेरा जन्म हुआ था तो सब खुश थे पर धीरे धीरे सबकी ख़ुशी छिनती चली गई, सबसे पहले माँ बाबूजी को मेरे हाथों की हड्डियाँ जुड़ी हुई है पता चला।
इतने पैसे भी नहीं थे की कोई इलाज हो सके, फिर थोड़ा बड़ा हुआ तो मेरी अपंगता सबको पता चलने लगी, रिश्तेदार पड़ोसी सब अजीब नज़रों से देखते, उनके बच्चे चिढ़ाते और कभी कभी मार भी देते, कभी धक्का देकर भाग जाते।
मेरे पड़ोसी रिश्तेदार सबने कितने नाम रख दिए थे, कोई राजू नहीं बोलता था,
अरे ठिंगने इधर आ....
अरे जोकर जोकर बच्चे बोलते ...
अपाहिज ....पोलियो का मरीज क्या क्या नाम नहीं था मेरा... बस राजू को छोड़ कर।
जब स्कूल में गया तो पढ़ने में बहुत मन लगता था, पर मेरी बदकिस्मती ने वहां भी मेरा साथ देती रही, वहां तो ऐसा भेद भाव होता की जैसे मुझे कोढ़ हो गया हो, मुझे सबसे अलग बिठाया जाता, कोई मेरा दोस्त नहीं था, सबके मज़ाक का पात्र ही बना रहता।
भगवान भी दुःख उसी को देते है जिसके पास दुःख पहले से हो,और सुख उसी को देते है जो पहले से सुखी हो वही तो हो रहा था मेरे साथ।
हर कदम पर जलील होता ये मेरा शरीर मेरी ख़्वाहिश थी क्या जो लोग इस तरह से मुझे दुत्कार देते थे, अगर मुझे इस दुनिया में जीने का हक़ ही नहीं था तो भगवान ने मुझे इस दुनिया में भेजा ही क्यों ... ये सोचते सोचते राजू फफक फफक कर रो पड़ा।
फिर आंसूओं को पोछता हुआ फिर सोचने लगा की, इन लोगो के दुत्कार के कारण मैंने पांचवी में ही पढ़ाई छोड़ दी !
कुछ ही महीने बाद बाबू जी भी गुजर गए, घर की हालत बिगड़ने लगी, पहले तो माँ चौका बर्तन करके घर चलाती थी पर बाद में माँ की भी तबियत ख़राब रहने लगी, कहीं से सर्कस वालो को पता चला मेरे बारे में तो वो मुझे नौकरी देने के लिए आये, मुझे काम मिलता भी क्या तीन फुट की लम्बाई के कारण और घर की हालत भी ख़राब ऊपर से पढ़ा भी नहीं था।
वो मुझे लेकर चले गए एक एक महीने बाद घर आता था, मर जाने का हमेशा मन करता पर बचपन में दिमाग इतना नहीं होता, सब भुला देता माँ बाबूजी से प्यार पाकर पर अब तो मरने का मन करता तो मेरी जिम्मेदारियां मुझे मरने नहीं देती।
सर्कस में भी कोई खास इज़्ज़त नहीं थी बस लोगो से जितना दूर रहता उतने ही सुकून से रहता।
पुरानी यादों ने मेरी आँखों को गिला और गले को सूखा दिया था!
ये जिंदगी मैंने कब चाही थी जिसमे कोई अस्तित्व ही ना हो मेरा, तभी आवाज़ आई राजू जल्दी तैयार हो जा अगला शो तेरा ही है ...
मैंने अपनी आंसूओं को पोछा और एक नकली मुस्कान के साथ अपने चेहरे को रंगों के बने दूसरे चेहरे के पीछे छिपा लिया और अपने शो के लिए तैयार हो गया।
शो शुरू हुआ,लोग मुझपे हँस रहे थे मुझे चोट लगता मुझे गिरता देख ताली बजा बजा कर लोग हँसते और उनको मेरे दर्द पर हँसता देख मेरी आँखों से आँसू निकल पड़ते। मेरे दर्द से उनको कितना सुकून मिलता ईश्वर ने क्या जिंदगी बनाई है, एक का दर्द दूसरे की ख़ुशी कब बन जाता है कोई नहीं जानता।
मेरा शो ख़त्म हुआ मैं अपने आंसूओं से भरे हुए आँखों और रुंधे हुए गले के साथ वापस आया चेहरे से अपनी नकली हँसी के रंगों को निकल फेका और घर जाने की तैयारी में लग गया।
कपड़े बदल कर मैं मालिक के पास गया। मालिक शराब पी रहे थे, मैंने कहा मालिक पैसे दे दो मैं जल्दी घर निकल जाऊँ,
50000 हजार की गड्डी फेंकते हुए ये ले सबकुछ निपटा कर जल्दी वापस आ जइयो ...ठीक है मालिक मैं बोलते हुए निकल गया,आज कोई ऑटो या बस भी नहीं दिख रही थी,मैंने सोचा अगले चौराहे पर कोई न कोई ऑटो मिल ही जायेगी, ये सोचकर अगले चौराहे तक पैदल निकल गया
चौराहे पर तक़रीबन 15 मिनट में पहुंच गया पर वहां भी कोई ऑटो नहीं था वही मैं ऑटो का इंतज़ार करने लगा, ऑटो तो नहीं आई पर चार शराबी बदमाश आते दिखे मैं डर गया और पैसों को छिपाने लगा, तभी उनकी नज़र मुझपे पड़ी, उनको शक हो गया की मेरे पास कुछ है
अरे छोटू क्या छुपा रहा है क्या है तेरे पास ..
मैंने डरते हुए कहा - न..न...नहीं कुछ भी नहीं..
अरे ये छोटू नहीं ठिंगू है ...कहकर सब हँसने लगे, उनमें से एक आया और मेरे जेब से वो पैसे की गड्डी छीन लिया मैं रोता गिड़गिड़ाता रहा
पर वो एक दूसरे के पास पैसे की गड्डियों को उछालते हुए मेरे साथ खेलने लगे जब थोड़ी देर में उनका मन भर गया तो उनमें से एक ने चाक़ू निकला और मेरे पेट में सीने में तक़रीबन 15 वार किया।
उनके हर वार पर मेरी चीख निकलती और वो चीख सुनकर वो चारों ठहाके मार मार के हँसते ,तालियाँ बजाते आखिर मेरे शरीर से एक एक कतरा खून का निकलता चला गया और मेरी आत्मा शांत होती चली गई।
अब ना मेरे पास जिम्मेदारियों का डर था ना मौत का खौफ अब मैं अपनी इस जिल्लत भरी जिंदगी से आज़ाद हो चला था। इतने दिनों में पहली बार मेरे चेहरे पर असली मुस्कान थी। आज मेरी मौत भी उन चार लोगो को हँसाने का काम कर गई, भगवान ने मुझे क्या जिंदगी दी थी कि मैं जन्म से मरण तक सबको हँसाता रहा अब मेरी आँखों में आँसू की जगह संतुष्टि थी, और चेहरे पर सुकून की मुस्कान .....
अब मैं इस निर्मम दुनिया से चेहरे पर मुस्कान लिए जा चूका था ....
क्या आप लोग किसी के मुस्कुराहटों के पीछे छिपे हुए दर्द को समझते है, या दूसरों के दर्द में ख़ुशियाँ बटोर लेते है सोचिये फिर बताइये ....