Pawan Gupta

Horror Tragedy Thriller

4.6  

Pawan Gupta

Horror Tragedy Thriller

भिखारी बाबा २( वो कौन थी )

भिखारी बाबा २( वो कौन थी )

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आज रात मेरी नींद मुझसे कोसों दूर थी, और वो नैना मेरे दिमाग में। ऐसी हालत में घर में अकेले रहना इतना कठिन है बार बार मन करता है, कि कमरे से बहार चला जाऊँ। कमरे में रहने से कोई अनहोनी ना हो जाये, बस दिमाग में मेरे सिर्फ डर ही डर फैला हुआ था, पता नहीं कब आखिर नींद आ ही गई।


सुबह मेरी नींद खुली सब कुछ नार्मल था, मुझे भी सुकून मिला कि कोई नैना नहीं है ये सब उस भिखारी बाबा ने मुझे डराने के लिए बोला था। मैं फटाफट तैयार होकर ऑफ़िस चला गया, आज मैं काफी शांत था, क्योंकि कल तो बहुत बुरी हालत थी, पर कल रात सब अच्छे से बीतने के कारण हिम्मत आ गई थी।  मैं रोज की तरह काम करके मैं घर पहुंचा आज मैं बहुत थक गया था, मैंने सोचा फ्रेश होकर थोड़ी चाय बना के पी लेता हूँ ँ, थोड़ी थकावट कम हो जाएगी। मुझे किताबें पढ़ना बहुत पसंद है तो सोचा कि चाय की चुस्की के साथ किताबें भी पढ़ लूंगा दिमाग भी फ्रेश हो जायेगा। मैं अपने हाथ मुँह धोकर चाय बनाने किचन में गया, किचन में सब कुछ तो ठीक था ...मगर ...चाय का बर्तन झूठा था, साथ में एक कप भी झूठा पड़ा था।

मुझे याद तो नहीं आ रहा था ....क्या.... मैंने सुबह चाय का बर्तन धोया था या नहीं।

पर मैं बर्तन कभी झूठा नहीं रखता था। खैर...

मैंने इस बात को इग्नोर करके बर्तन धोकर चाय बनाया और चाय पीता हुआ किताबें पढ़ने लगा।

किताब डरावनी कहानी की थी किताब का नाम था कर्ज़दार।

वो होर्रर लव स्टोरी थी, उस कहानी को पढ़ने में मैं इतना खो गया कि मुझे समय का पता ही नहीं चला।

9 बज गए थे, मैंने जल्दी जल्दी रात का खाना बनाया और खाना खाकर लेटने चला गया।

   

लगभग 11 बज गए थे, आज मेरे मन में कोई डर नहीं था, मुझे आज जल्दी नींद भी आ गई। मैं अभी कच्ची नींद में ही था कि तभी मैंने महसूस किया कि घर में कोई घूम रहा है, बर्तनों की आवाज़े आ रही है। मैं ये सब महसूस करते ही अचानक से हाँफते हुए नींद खुली, ऐसा लगा की शायद मैं धुँधला धुँधला सब देख रहा था। मैं तुरंत बिस्तर से उठकर लाइट जलाने के लिए स्विच की तरफ भागा। लाइट के जलते ही मैंने पूरे घर में अपनी नज़र दौड़ाई, घर में एक दम शांति पसरी हुई थी। ध्यान लगाया तो ये बर्तन की आवाज़ पड़ोस के किसी घर से आ रही थी। मैं खुद को ही ताना मारते हुए "मैं भी न ... सबसे बड़ा डरपोक हूँ ँ, नींद में भी मुझे भूत दीखते है। कहते हुए मैं बिस्तर पर वापस सोने आ गया।  अब कच्ची नींद ख़राब हो जाने के बाद वापस नींद आसानी से कहाँ आनी थी। वो भी इस हालत में ...... मैं अब जगा ही रह गया। जब भी कोई आवाज़ होती तो मेरा ध्यान उस आवाज़ पर जाता, और मैं उधर देखने लगता।

थोड़ी देर आंखे बंद करके मैं सोया ही था कि खरररर खरररर की आवाज़ आने लगी, आवाज़ तेज़ नहीं थी पर रात के सन्नाटे में आवाज़ साफ़ सुनाई दे रही थी। ऐसा लग रहा था ... मानो कोई दीवार को किसी चीज से घिस रहा हो। इस आवाज़ को सुन के मेरे कान खड़े हो गए, और डर के मारे मेरी हालत ख़राब हो गई। मुझे बहुत अजीब अजीब वहम होने लगा, आवाज़ जहाँ से आ रही थी, मैंने बहुत हिम्मत करके उधर देखने की कोशिश की। पर उधर दीवार की तरफ बहुत अंधेरा था और आवाज़ उसी अंधेरे से आ रहा था, उस टाइम कमरे की लाइट बंद थी।  इसलिए उस कोने में कुछ भी नहीं दिख रहा था, अब भी वो आवाज़ उसी दीवार से आ रही थी, मैंने बहुत कोशिश किया की कुछ पता चले पर अंधेरे में कुछ नहीं दिखा।

अब मेरी हालत एक दम ख़राब हो गई, अब मुझे महसूस होने लगा की नैना ही है, उस अंधेरी दीवार पर कुछ तो कर रही है।  शाम को बर्तन भी झूठा था अब मुझे वो भी याद आने लगा, बर्तन में शायद नैना ने ही कुछ बनाया होगा।  मेरी तो बहुत बुरी हालत होती चली गई ये सब सोच सोच के ......अब मैं क्या करूँ।


मैं अब फँस चुका था, मेरी हालत ऐसी थी कि मुझे लग रहा था। मैं अपने बिस्तर से चिपक गया हूँ। मुझसे सिर्फ मेरी गर्दन ही हिल पा रही थी, मेरी जुबान तो पेट में गिर गई हो ऐसा माहौल हो गया था, बस बिस्तर पर मुर्दो की तरह पड़े पड़े इंतज़ार करता रहा कि सब ठीक हो जाये। कहते है न बुरे वक़्त में सब बुरा होता है वही मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ, 30 मिनट मुझे इंतज़ार करते हुआ होगा कि मुझे बहुत जोर की लघुशंका आ गई। अब मैं क्या करूँ, मैं पसीने में डूब गया मेरे पास कोई रास्ता नहीं दिख रहा था। मैं जितना उसको रोकता उतना ही मुझे पसीने आ रहे थे, ऐसा लगने लगा कि मेरा पेट न फट जाए।

मैंने भगवान का नाम लेना शुरू किया, पहले धीरे धीरे फिर तेज़ तेज़ आवाज़ में भगवान को याद करने लगा। अब लघुशंका को रोकना मुश्किल था, तो मैं झट से बिस्तर से उठकर कमरे की लाइट जला दी। लाइट के जलते ही मैंने पूरे कमरे में नज़र घुमाई कमरे में कोई भी नहीं था। फिर.....ये आवाज़ कहाँ से आ रही थी। मैंने ध्यान लगाकर सुना तो आवाज़ अभी भी आ रही थी। मैंने आवाज़ की दिशा में देखा तो .....ये तो वही बात हो गई खोदा पहाड़ और निकला चूहा ....


उस दीवार पर एक कलैंडर टंगा था, जो पंखे की हवा से उड़ रहा था। और दीवार से बार बार रगड़ खा रहा था, ये आवाज़ खर्रर खर्रर उसी की थी। ये सब पता लगने के तुरंत बाद मैं लघुशंका के लिए भागा, वापस आकर मैंने लाइट बंद नहीं की और खुद को बेवकूफ़ कहता हुआ सोने चला आया। वो रात तो ऐसे ही बीत गई, अगला दिन नॉर्मली रोज की तरह था। पर रात होते ही फिर डर सताने लगा। आज भी मैं लाइट जलाकर सोया ... लगभग २ बज रहे होंगे ...मेरी नींद खुली किचन से हलकी आवाज़े आ रही थी, मैं डरते डरते किचन में गया पर वहां कोई नहीं था। सी वक़्त फ्रिज़ खुलने की आवाज़ आई, मैं तुरंत कमरे की तरफ भागा पर यहाँ भी कोई नहीं था, मैंने फ्रिज से पानी निकला और पानी पीकर सोने चला गया। सुबह सोकर जगा तो मैंने देखा कि किचन में चाय का बर्तन झूठा है और कप भी चाय पीकर रखी हुई है। कल रात २ बजे जब मैं जगा था तब तो ये बर्तन नहीं थे फिर ये झूठे बर्तन सुबह कहाँ से आये .... ( बर्तनो को देखकर मैंने सोचा ) अब तो सच में डरने वाली बात थी, क्योंकि मुझे अच्छे से याद है कि २ बजे रात को किचन बिलकुल साफ़ था। दो बजे रात को मैंने किचन में हलचल भी तो महसूस किया था। अब मैं क्या करूँ मेरी जिंदगी क्या मोड़ ले रही थी, क्या मैं ये घर बदल दूँ, पर कैसे ?

मैंने तो एडवांस 5000 रुपये भी दे दिए है, अब घर बदलने पर मेरे पैसे वापस नहीं मिलेंगे। और दूसरी जगह जाने के लिए पैसे भी नहीं है, क्या करूँ समझ नहीं आ रहा था, मैं बहुत परेशां था। आज मैंने कोई नाश्ता नहीं बनाया, भूखे ही ऑफ़िस गया, वही ऑफ़िस के बहार से नाश्ता कर लिया। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि अपनी परेशानी किसे बताऊ, कौन समझेगा मुझे, सब तो डरपोक डरपोक कहकर मज़ाक ही बनाएंगे। इसीलिए मैंने ये बातें किसी को नहीं बताई, ऑफिस की छुट्टी हुई, मैं घर की तरफ चुप चाप चल दिया। मैंने सोचा कि डर को मैं खुद के ऊपर हावी नहीं होने दूंगा, मैं खुद ही इस परेशानी से निपट लूँगा, अगर ज्यादा प्रॉब्लम हुई तभी मैं अपने दोस्त को बताऊंगा। ये सोचकर मैं अकेले घर आ गया, मैं रात का खाना बहार से ही ले आया था, रात को अपना दिमाग नैना की बातों से हटाने के लिए मैं मूवी देखने लगा। मूवी 11 बजे तक चली, मूवी खत्म होने के बाद मैंने खाना खाया, खाना ज्यादा था तो बचा हुआ खाना मैंने फ्रिज में रख दिया, ये सोचा की सुबह गर्म करके नाश्ते में खा लूंगा। मैं खाना खाकर सोने चला गया, मुझे पता था कि मेरे साथ कुछ भी हो सकता है, इसलिए मैं भी सजग था, हर परेशानी से लड़ने के लिए तैयार था। आज अच्छी नींद आई, आज कमरे में कोई हरकत नहीं हुई, या ... शायद .....मैं ही गहरी नींद में था।      


मैं ऑफिस जाने के लिए तैयार होकर नाश्ता करने को हुआ तो देखा की फ्रिज में जो कल खाना रखा था वो है ही नहीं ... खाने के बर्तन खाली पड़े थे। अब मैं क्या करूँ .....जितना मैं डर से दूर भागना चाहता हूँ , उतना ही मेरी जिंदगी में गलत हो रहा है ...अब ये अनदेखा डर मुझपर हावी होने लगा था।

अब मैं थक गया था मैंने सोच लिया कि मैं किसी ना किसी से मैं हेल्प लूंगा, नहीं तो मैं यूं ही डर डर के मर जाऊंगा। मैं कितनी भी हिम्मत दिखा लू, पर उस घर में रात बिताना किसी कब्रिस्तान में रात बिताने से कम नहीं था, बस फर्क इतना था कि मेरे सर पर छत थी। मैंने सोचा कि आज ऑफ़िस के बाद मैं अपने दोस्त अमित से हेल्प लूंगा, यही सोचकर आज मैं ऑफ़िस गया। आज लंच में हिम्मत करके मैंने अमित से बात की, मैंने शुरू से लेकर अंत तक सारी बातें अमित को बता दिया। ये बातें सुनकर अमित की भी हवाइयाँ उड़ने लगी, पर वो मुझे अकेले भी तो नहीं छोड़ सकता था न। पहले तो वो बोलता रहा कि मेरे घर चल वही रहना, पर मैं कितने दिन उसके घर रहता इसलिए मैंने कहा - कुछ दिनों के लिए मेरे साथ चल, परसों रविवार है मैं रविवार को किसी पंडित से मिलकर इसका हल निकाल लूंगा। ये सब सुनकर अमित मेरे घर जाने को तैयार हो गया, उस शाम हम दोनों साथ ही घर आये, रात का खाना हम बाहर से ही ले आये। हमने शाम को आराम से मूवी देखीं, और खाना खाकर सो गए, आधी रात को आज फिर फ्रिज खुलने की आवाज़ आई कमरे की लाइट बंद थी। फ्रिज के खुलने की आवाज़ हम दोनों ने सुनी, अमित बहुत ज्यादा डर गया था, उसने आवाज़ दिया ... भाई.. तू यही है न।

मैंने कहा - हां यही हूँ, हम दोनों ही डरे हुए थे, मैंने तुरंत फ़ोन की लाइट जलाई, और दौड़ कर कमरे की लाइट जलने के लिए स्विच की तरफ भागा।

मैंने तुरंत लाइट जलाया पर कमरे में कोई नहीं था, वहां फ्रिज के नीचे एक पानी की बोतल गिरी हुई थी। पर कोई दिखाई नहीं दे रहा था, इस वाकया से हम दोनों बहुत डर गए थे, किसी तरह हम दोनों ने जाग कर रात बिताई।


सुबह हुई हम दोनों तैयार होकर ऑफ़िस आ गए, हम दोनों ने बाहर ही नाश्ता किया, आज इंटरनेट की हेल्प से एक अच्छे पंडित का पता निकला।  वो पंडित जी प्रेत बाधा, भूत, तंत्र विद्या आदि में बहुत माहिर थे। उनका फ़ोन नंबर और एड्रेस नोट करके पहले हमने उनको फ़ोन करके अपॉइंटमेंट ले लिया। पंडित जी ने शाम को मिलने को कहा। हम दोनों शाम को ऑफिस के तुरंत बाद पंडित जी के घर चले गए। पंडित जी से मिलकर हमने सारी बात उनको बता दिया, उन्होंने हमारी सारी बातें ध्यान से सुनी, और हमें दो ताबीज दिया और कहा कि इन ताबीज को हम अपनी कलाई पर बांध ले। ये ताबीज हमारी रक्षा करेगी, और वो हमारे घर कल 12 बजे तक आएंगे। इस ताबीज की वजह से हमें आज रात कोई परेशानी नहीं होगी। हमारे मन में भी ताबीज पाकर थोड़ी संतुष्टि थी, इन तबीजो के उन पंडित जी ने एक हजार रुपये लिए। खैर ...हम रात 9 बजे तक अपने घर पहुंच गए, हमने रात का खाना बाहर ही खा लिया था, अगला दिन रविवार था, तो ऑफ़िस जाने की भी टेंशन नहीं थी। बस अब कल पंडित जी के आने का इंतज़ार था, ताबीज को अपनी कलाई पर बांध कर सोने चले गए। सुबह हमारी नींद खुली, आज रात कोई घटना नहीं घटी, पंडित जी के ताबीज के कारण रात बहुत शांति से कटी कोई भी डरावनी बात नहीं हुई। नींद भी बहुत अच्छी आई, सुबह उठकर मैंने दो कप चाय बनाई, हमने चाय बिस्किट का नाश्ता किया। उसके बाद अमित अपने घर चला गया ...


अमित ने कहा -पंडित जी 12 बजे तक आएंगे, तब तक घर जाता हूँ , नहा धोकर फ्रेश होके 12 बजे तक आ जाऊंगा। ठीक 12 बजे अमित मेरे घर आ गया, मैंने भी तब तक अपना सारा काम निपटा लिया था, सारे कपड़े धूल गए थे, घर की सफाई हो गई थी, खाना भी बना लिया था। पंडित जी थोड़ा लेट हो गए थे वो 12:30 पर आये। घर आकर पंडित जी ने हमसे अगरबत्ती, लौंग, गंगा जल मंगवाए, कुछ सामान वो खुद भी लेकर आये थे।  एक घंटे उन्होंने कुछ मंत्रो का जाप किया और हर घर में गंगा जल छिड़क दिया, फिर लोहबान का धुआँ पूरे घर में करके दिखाया। ये सब करते करते करीब तीन बज गए थे, इन सब पूजा पाठ करने की फीस पंडित जी ने २००० रुपये लिए। ख़ुशी बस इस बात की थी कि उस नैना के भूत से छुटकारा मिल गया था, अमित भी बहुत खुश था क्योंकि उसका दोस्त अब सेफ था। उससे भी बड़ी बात तो ये थी कि अमित को अब मेरे घर सोने की जरूरत नहीं थी, इस बात से अमित बहुत खुश था। अब सब नार्मल हो गया था, आज मैं अकेले ही घर पर सोया, अमित अपने घर चला गया, अब मुझे अच्छी नींद आती थी ...


अगला भाग भिखारी बाबा 3 (वो कौन थी ) 


        


     


   


    

         


     


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