Priyanka Gupta

Abstract Drama

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Priyanka Gupta

Abstract Drama

अजूबा

अजूबा

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"भाभी,तोरण के समय तो कम से कम 5 सोने की गिन्नी मिलनी चाहिए थी। "

"दीदी,अब मैं क्या कहूँ ? आपके भैया को बोला था कि लेने-देने की सब बातें पहले ही तय कर लेना।"

"भाभी,आपके समधी तो बड़े कंजूस मालूम होते हैं। "

"चलो दीदी,अभी तो अंदर चलो। "

जब से सुनीता जी के बेटे अभिनव का विवाह राशि से तय हुआ है ,तब से ही सुनीता जी बेटे के ससुराल के लेन-देन से नाखुश सी हैं और आज तो विवाह के दिन भी उनकी अपेक्षाओं के अनुरूप राशि के पापा लेन -देन नहीं कर रहे थे।

विवाह के पहले भी उन्होंने कई बार अपने पति सागर जी से कहा भी कि,"राशि के पापा को बोलिये कि आज के ज़माने के अनुसार सारी रस्में करें। इकलौती बेटी है,लेन -देन में कंजूसी क्यों कर रहे हैं।"

सागर जी, सुनीता जी की बात एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल देते थे।कभी कहती कि,"लोग कहेंगे ;इनके बेटे में ही कुछ कमी है ;तब ही तो बेटे के ससुराल से कुछ आ ही नहीं रहा। "

"मम्मी,अगर अच्छा दहेज़ मिले तो लोग यह भी कह सकते हैं कि लड़की में ही कोई कमी है ;तब ही तो इतना सारा दहेज़ दिया है। केवल पैसा ही पैसा देखा है। "सागर जी के कुछ बोलने से पहले अभिनव कह देता। 

"तुम दोनों बाप -बेटों को ही दुनियादारी की कोई समझ नहीं है। बाद में कोई कुछ कहे तो मुझे मत कहना। "

अगवानी के समय चाँदी के बर्तन नहीं मिलने से सुनीता जी का मूड बिगड़ गया था। फुर्सत पाते ही,एक -दो बार सागर जी को उलाहना भी दे चुकी थी। रिश्तेदारों की बातों ने,बातें कम तानों ने भी आग में घी डालने का काम किया था। यह बात और है कि मौके की नज़ाकत के कारण, यह आग केवल उनके अंदर ही सुलग रही थी;उसकी तपन किसी और तक नहीं पहुँच रही थी। 

राशि और अभिनव का विवाह संपन्न हुआ और विदाई की घड़ी आयी। राशि और उसके घरवालों की आँखें नम थी। 

"मेरी बेटी से कभी कोई गल्ती हो तो अपनी बच्ची समझकर माफ़ कर दीजियेगा। ",राशि के पापा ने दोनों हाथ जोड़कर, रूँधे गले से सागर जी से कहा। 

"अरे,आपकी बेटी हमारी बहू है और हम आपके आभारी हैं। ",सागर जी ने राशि के पापा के पैर छूते हुए कहा। 

राशि के पापा ही नहीं,वहाँ उपस्थित हर एक व्यक्ति की आँखें आश्चर्य से फैलकर चौड़ी हो गयी थीं।आज तक तो सबने बेटी के बाप को ही बेटे के बाप के पैरों में झुकते हुए देखा था।यह घटना तो सभी के लिए अजूबा थी। 

"आप यह क्या कर रहे हैं ?",राशि के पापा ने झिझकते हुए कहा। 

"समधी जी,आप दानदाता हैं और मैं याचक हूँ।आपने आपको जो सबसे प्रिय है,यानि आपकी बेटी मेरे परिवार को सौंपी है। मैं आपसे जो ले जा रहा हूँ,वह अमूल्य है। इसलिए आप मेरे पूजनीय हैं। ",सागर जी ने अपनी पत्नी सुनीताजी की तरफ देखते हुए कहा। 

राशि के पापा निःशब्द थे। सुनीताजी को अपने सवालों के जवाब मिल गए थे और अब वह भली भाँति समझ चुकी थी कि उनके पति अपनी एक अलग सोच रखते हैं।


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