Madhu Vashishta

Action Inspirational

4.2  

Madhu Vashishta

Action Inspirational

अधूरापन

अधूरापन

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   क्या आपको जीवन में अधूरापन और खालीपन नहीं लगता ? वर्मा जी के पूछने पर रावत जी ने सिर हिलाते हुए कहा बिल्कुल भी नहीं। परमात्मा के राज में सिर्फ खुशी और पूर्णता ही है। यह नजर का फेर है या कि नजरिए का कि जीवन में सब कुछ अधूरा अधूरा ही लग रहा है। परमात्मा ने जो हमको दिया है अगर हम उस पर नजर डालें तो सिवाय उसके शुकराना के हम कुछ कर ही नहीं पाएंगे लेकिन हम लोग हमेशा नजर उस पर डालते हैं जो कि हमें नहीं मिला और परमात्मा की दया देखो वह हमको वह चीज दे भी देता है लेकिन फिर भी क्योंकि मन ने संतुष्ट होना ही नहीं सीखा तो फिर असंतुष्ट हो जाते हैं और जीवन में अधूरापन लगने लग जाता है।

        फर्क पड़ता है भाई साहब ,आपके तो दो बेटे हैं और मेरी दोनों बेटियां उनके जाने के बाद घर बेहद खाली सा लगने लगा। कितना दुखदाई होता है बचपन से पाली गई बेटियों को पराए घर भेजना। हम तो इस अवसाद से निकल ही नहीं पा रहे हालांकि बेटियों की शादी मैंने नजदीक ही करवाई है लेकिन वह अब जब भी वह आती हैं उनका आना एक मेहमान सा ही लगता है। उनकी शादी के बाद हम दोनों बिल्कुल अकेले से हो गए हैं इसलिए बच्चों के बिना जिंदगी में अधूरापन सा ही लगता है। 

           वर्मा जी हंसते हुए बोले कि तुम्हारी बेटियां तो जब तब चाहे घर में आ ही जाती है लेकिन मैं तो अपने बेटों के आने के इंतजार भी नहीं करता।

     पाठकगण आपकी जानकारी के लिए इन दोनों के परिवार के विषय में बतला दूं। रोजाना सुबह-शाम यह दोनों परिवार पार्क में घूमने के लिए निकलते हैं। जहां रावत जी और उनकी पत्नी रिटायरमेंट के बाद भी एकदम लेटेस्ट कपड़े पहने अपने आप को मेंटेन करे हुए पार्क में सबके चहेते बने हुए, अपनी उम्र से बहुत कम लगते हैं। पार्क में लोग उनके बारे में बातें करते हुए यही कहते हैं कि इन्होंने अपने आप को मेंटेन करने के लिए एक डाइटिशियन भी रखी हुई है और यह हमेशा हेल्दी खाना ही खाते हैं। यह दोनों बहुत स्वार्थी है और अपने बच्चों को भी अपने साथ नहीं रखते। इन्होंने ही अपने बच्चों को अपने साथ घर में नहीं रहने दिया। यह दोनों बहुत रोक टोक करते हैं ।रावत जी के दोनों बेटे बहुत पैकेज वाली अच्छी नौकरी में हैं और दोनों का विवाह हो चुका है। क्योंकि दोनों ने अपना विवाह अपनी मर्जी से किया है और वह भी अपनी मर्जी से ही अपनी जिंदगी जीना चाहते थे। रावत जी भी एक सरकारी ऑफिसर रिटायर हुए थे और हमेशा खुद को और घर को बेहद अनुशासित रखा। घर में कब क्या और कैसे खाना है और हर चीज सलीके से कैसे रहेगी ऐसा ध्यान रखने में उनकी पत्नी का भी कोई सानी नहीं था। उनके घर में विवाह के उपरांत बच्चों द्वारा की गई अनुशासनहीनता, हमेशा बाहर का जंक फूड खाना, अपना ख्याल ना रखना , रातों को देर से सोना और सुबह देर से उठना इन सब चीजों से मिसिज़ रावत और मिस्टर रावत बेहद परेशान हुए तो इससे पहले कि कोई भी बात बड़े, रावत जी ने अपने बेटों को उनकी तरह से जिंदगी बिताने के लिए अलग फ्लैट लेकर रहने के लिए कहा । उनके जाने के बाद दोनों अपने आप को पार्क में घूमने और बहुत से समाज सेवा इत्यादि के कार्यों में ही व्यस्त रखते थे।

      इसके विपरीत वर्मा जी की 2 बेटियां थी जिनका विवाह उन्होंने घर के पास में ही कर दिया था हालांकि उनकी दोनों बेटियां जब तब आती ही रहती थी और उनके बच्चे भी ज्यादातर मिसिज वर्मा के पास ही रहते थे लेकिन फिर भी वह अपने आप को बहुत अकेला और घर में अधूरापन सा महसूस करते थे। पार्क में भी आते तब भी उदासी उनके चेहरे से झलक रही होती थी। अभी उनकी इतनी उम्र भी नहीं थी जितने कि वह वृद्ध लगते थे। जहां रावत जी से मिलकर सब का उत्साह दोगुना हो जाता था वही वर्मा जी से लोग कन्नी ही काटते थे क्योंकि परेशानियां तो अपने ही घर में बहुत हैं लोग पार्क में फ्रेश होने आते हैं ना कि परेशान होने।

        उस दिन जब वर्मा जी और रावत जी दोनों पार्क में मिले और थोड़ी देर साथ बैठे तो वर्मा जी ने जब अपने अकेलेपन और अधूरे पन का जिक्र किया तो हंसते हुए रावत जी ने बोला कि परमात्मा की सृष्टि में ना तो कुछ अकेलापन है और ना ही अधूरापन हर आदमी स्वयं में संपूर्ण है। सब इस दुनिया में अकेले ही आए हैं और अकेले ही जाएंगे यह जो बीच का समय है इसमें हम सब मिलते रहते हैं और खुशी या दुख यह अपना-अपना नजरिया है आपको जहां कोई भी अपना नहीं लगता, मुझे तो आप भी अपने ही लगते हो। मेरे बच्चे भी अलग रहते हैं लेकिन मैं खुश हूं कि वह अपनी तरह से जी रहे हैं हालांकि मैं उनके उस तरह की अनुशासनहीनता को पसंद नहीं करता लेकिन वह खुद बहुत अच्छे से रह रहे हैं इस बात को सोचकर ही मुझे बहुत गर्व होता है। अकेले तो हम भी हैं इसके विपरीत आप की लड़कियां तो जब तब आपके पास आई ही रहती है और यह कितनी अच्छी बात है कि समीप रहने के कारण आपको अपनी बेटियों से दूरी भी नहीं झेलनी और आप अपनी जिम्मेदारी अच्छे से निभाकर मौज भी कर सकते हो। यह सिर्फ नजरिए का फर्क है। जरूरत पड़ने पर इस समय चाहे कोई भी बच्चे हो , आप अपने बेटे के साथ रहे या बेटी के, फुर्सत तो शायद किसी को भी नहीं होगी, वह भी तुम्हारे बीमार होने पर तुम्हारे लिए लिए अटेंडेंट ही रखेंगे। इसलिए आज के समय की यही मांग है कि आपको योगा इत्यादि करके, समाज सेवा कर के खुद को मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ ही रखने की कोशिश करनी चाहिए। परमात्मा की सृष्टि में हर चीज संपूर्ण है सिर्फ हमारा मन ही है जो कि उसे अधूरा बताता है।

        शायद रावत जी सही ही कह रहे थे। दोनों की परिस्थितियां कमोबेश एक सी है लेकिन सिर्फ सोच के फ़र्क ने दोनों के जीवन में कितना बदलाव ला दिया!



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