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Madhu Vashishta

Inspirational

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Madhu Vashishta

Inspirational

पक्की दोस्ती

पक्की दोस्ती

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मानसी और मीरा दोनों बहुत पक्की सहेलियां थीं, उनका घर भी आमने-सामने था और कॉलेज और स्कूल वह भी दोनों ने साथ-साथ किया। दोनों की ही एमबीए करने की भी इच्छा थी हालांकि एंट्रेंस एग्जाम तो दोनों ने इकट्ठे ही दिए लेकिन मानसी की शादी तय हो जाने के कारण मानसी ने पढ़ाई छोड़ दी और मीरा ने एमबीए करने के लिए एडमिशन ले लिया।

    हमेशा साथ रहने वाली दोनों सहेलियां अब अलग अलग राह पकड़ चुकी थी मीरा को मानसी की बहुत याद आती थी। चाह कर भी मानसी जैसी अच्छी सहेली नए कॉलेज में उसे फिर कोई मिली भी नहीं। मानसी भी अपने वैवाहिक जीवन में व्यस्त होने के कारण उससे ज्यादा बात भी नहीं कर पाती थी ।कभी कभी जब वह अपने मायके आती तो दोनों सहेलियां आपस में मिलती थी अब तो क्योंकि दोनों के रास्ते अलग हो गए थे तो दोनों की बातें भी अलग ही हो गई थी।

    मानसी अपने वैवाहिक जीवन के ऐसे सुखद अनुभव सुनाती थी कि मानो शादी करना ही जीवन का चरम लक्ष्य हो। एक समय उन दोनों के सपने अच्छी नौकरी करके अपने पैरों पर खड़े होने के थे। लेकिन अब उससे मिलने पर मीरा को यही महसूस होता था कि जिंदगी की सफलता सिर्फ विवाह करने में ही है। फेसबुक पर जब भी मानसी की बाहर घूमते हुए फोटो देखती या दोनों के लिखे हुए पोस्ट देखती थी जिसमें की लिखा होता था मेड फॉर इच अदर। सुंदर-सुंदर ड्रेसेस और गहनों में मानसी की फोटो मीरा को बहुत आकर्षित करती थी।

     अब जबकि मीरा के सेमेस्टर एग्जाम चल रहे थे और मीरा पढ़ाई की बजाए सिर्फ मानसी की फेसबुक प्रोफाइल को देखने में ही व्यस्त थी। इसी बीच मानसी के पति के दोस्त रमेश मीरा के लिए भी एक रिश्ता लेकर आए। उनका घर भी मानसी के घर के सामने वाले फ्लैट में ही था। और वह भी मानसी के पति के साथ में ही उसी कंपनी में कंप्यूटर प्रोग्रामर था। मानसी के विवाह के अवसर पर जब वह बारात में आए थे तो वही उन्होंने मीरा को देखा था।

    मीरा के पिता की इच्छा थी कि उनकी बेटी अपनी पढ़ाई पूरी करके पहले नौकरी करें और उसके बाद में ही वह उसकी शादी करना चाहते थे। उन्हें मानसी के पिता के जैसे अपनी पुत्री की शादी करने की कोई जल्दी इसलिए नहीं थी क्योंकि मानसी के जैसे मीरा की कोई छोटी बहन और बड़ा अविवाहित भाई नहीं था , जिनकी शादी करने के लिए उन्हें जल्दी हो।मीरा का छोटा भाई भी अभी बहुत छोटा था। और उसके पिता चाहते थे कि वह अपनी पढ़ाई पूरी करके कोई कंपीटेटिव एग्जाम देकर पहले नौकरी करे।

      मीरा उस नए कॉलेज में भी एडजस्ट नहीं हो पाई थी, जब भी कभी मानसी से बात करती थी तो वह हमेशा अपने घूमने फिरने और नई नई ड्रेसेस खरीदने की ही बात करती रहतीं थी। मानसी के पति के दोस्त के रिश्ते के आने के बाद मीरा ने अपने कॉलेज भी जाना लगभग छोड़ ही दिया था। धीरे-धीरे मीरा का पढ़ाई से भी मन उचट ही रहा था। उसकी मम्मी सब कुछ समझती भी थी और फिर उन्होंने उसके पापा को समझाया की शादी तो करनी ही है और अगर मेरा उस लड़के से शादी करने में इच्छुक है तो हम इसकी भी शादी कर ही देते हैं।

    अंततः ना चाहते हुए भी मीरा के पिता को उसका विवाह ही करना पड़ा। मीरा इस विवाह के होने से बहुत खुश थी क्योंकि अब वह और मानसी दोनों फिर से साथ साथ रह पाएंगे। सबसे अच्छी बात तो यह थी जैसे कि यह दोनों पक्की सहेलियां थी ऐसे ही मानसी के पति और पवन भी बहुत अच्छे दोस्त थे

      विवाह के बाद जैसा मीरा का ख्याल था और जैसे उसने सपने देखे थे वैसा तो बिल्कुल ना हुआ। हालांकि पवन और मीरा ने फ्लैट में अकेले ही रहना था। उसके साथ ससुर गांव में ही रहते थे। पवन को अपने गांव में काफी पैसे अपने माता-पिता को भी भेजने होते थे क्योंकि पवन के पिता के पास कोई अतिरिक्त आय नहीं थी। उनकी थोड़ी खेती की जमीन थी जिससे कि उनके खाने-पीने का काम चल जाता था। एक गाय भी होने के कारण उन्हें दूध की समस्या भी नहीं थी। लेकिन फिर भी माता पिता और शादी शुदा बहनों के खर्चों के लिए पवन को बहुत से पैसे गांव में भेजना ही पढ़ते थे। विवाह के पश्चात मीरा अपने मायके के जैसे ही घर के काम के लिए किसी को भी रखना चाहती थी लेकिन पवन को लगता था कि केवल उन दो जनों के काम के लिए किसी को काम के लिए रखना पैसे बिगाड़ना ही है। पवन बुरा लड़का तो नहीं था लेकिन घर की जिम्मेदारियां कुछ अलग होतीं है, वह बहुत किफायत से पैसे खर्च करता था। बाहर होटल से खाना खाना या कि कहीं घूमने जाना उसे पसंद नहीं था।

     सामने वाले फ्लैट में मानसी और रमेश तो रहते थे लेकिन उनकी जिंदगी भी जो कि उसने उनकी फेसबुक पर फोटो डाली हुई देख कर अंदाजा लगाया था उससे बिल्कुल विपरीत थी। मानसी और रमेश की जोर-जोर से लड़ने वाली आवाजें भी अक्सर उनके फ्लैट से आती रहती थी। वह प्यार जो फेसबुक पर दिखता था, वह तो दोनों के बीच कहीं था ही नहीं।

    आज वह समझ रही थी कि इस सोशल मीडिया की चमकती रोशनी अक्सर लोगों को गुमराह करती है।शादी कोई 3 घंटे की पिक्चर नहीं है जो कि देखो और आराम से खट्टे मीठे एहसास लेकर आ जाओ। विवाह एक बंधन ही है जो कि निभाना ही है। मीरा अब फिर से एमबीए को पूरा करना और पढ़ना चाहती है , हालांकि उसके पिता अभी भी उसको पढ़ाई के लिए पैसे देने को तैयार है, लेकिन----------।

    पाठकगण आपका इस विषय में क्या ख्याल है? दोस्ती जरूरी है दोस्त भी जरूरी है लेकिन अपने लक्ष्य को भूल कर केवल अपने दोस्ती के कारण दोस्ती पर गवाना ठीक है क्या?कमेंट में जरूर बताइए ?


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