दोस्त
दोस्त
दोस्ती एक ऐसा बंधन है जोकि समय की सीमा से भी ऊपर है। दोस्त हर समय केवल दोस्त होता है और वह जब भी मिलता है वही पुराने पल वही अंदाज जिंदगी का रंग ही बदल जाता है। बाकि सारे रिश्ते तो हमको परमात्मा प्रदत्त होते हैं केवल दोस्त ही एक ऐसा रिश्ता है जो कि हम खुद चुन सकते हैं।
हमें याद आता है अपना स्कूल का टाइम जबकि हमारी क्लास में रहने वाले हम चारों का ग्रुप पूरे स्कूल में मशहूर था। मैं, मीना, गीता और रानी स्कूल हो या घर हर समय धमा चौकड़ी मचाए रहते थे। उस समय हम सब सरकारी मकान में रहते थे और रानी के पिता का अपना व्यवसाय था और वह हमारे सरकारी फ्लैट से थोड़ी दूर पर ही रहते थे। हम चारों फाइनल पेपर की तैयारी हो, या कहीं घूमने के लिए इकट्ठे ही जाते थे। यह 60 70 के दशक की बात है जबकि ग्यारहवीं क्लास को हायर सेकेंडरी कहते थे और उसके बाद ही कॉलेज में जाया जाता था।
ग्यारहवीं क्लास के इम्तिहान नजदीक थे लेकिन इसी बीच ही रानी ने बताया कि उसका विवाह होना निश्चित हो गया है। उस दशक में जल्दी विवाह होना आम बात थी। मैं मीना और गीता उसकी विवाह के लिए उत्साहित तो बहुत थे और वही समय हमारी 11वीं की पढ़ाई का भी था। पाठकगण यह वह समय था जब कि पढ़ने के लिए किसी पर कोई दबाव नहीं था और ना ही कोई समय का अभाव था। हम सहज भाव से पढ़ते हुए घर के काम भी करते थे और खेलते भी थे अब रानी की शादी की तैयारी करने का एक और काम आ गया था।
जब हमारे पेपर खत्म हुए उसके बाद ही रानी की शादी की डेट निकली थी। हम तीनों ने शायद अपनी सहेली की शादी पहली बार अटेंड करी थी। घर में पहली बार हमारे नाम से कोई कार्ड आया था। हमारे माता-पिता ने हमको रानी की शादी में रात भर रहने की इजाजत भी देती थी। उसकी शादी में हमने बहुत मजा करा। उसका विवाह जयपुर में होना निश्चित हुआ था। गणगौर में उसके विवाह से पहले उसके ससुराल से बहुत सुंदर सोने चांदी के गहनों से सजी हुई गुड़िया आई थी। इससे हमें यह तो ज्ञात हुआ कि वह जयपुर के बहुत अच्छे राजघराने में जा रही है।
उसने हमसे वादा किया था कि जब मुझे विदा के बाद पहली बार घर लिवाने के लिए मेरे भैया भाभी जाएंगे तो तुम सब भी जयपुर जरूर आना और मेरा ससुराल देखना।
हमारे पेपर भी खत्म हो चुके थे और हमारी उसके ससुराल को देखने की उत्सुकता भी बहुत बड़ी चढ़ी थी। बड़ी मुश्किल से हम तीनों ने अपने माता-पिता को इस बात के लिए तैयार किया था कि हम रानी के भैया भाभी के साथ उसके ससुराल जयपुर में जाएंगे।
हम तीनों सहेलियां बैठकर जयपुर भ्रमण के बारे में ही सोचती रहती थी। उसकी विवाह के अवसर पर हम तीनों रात में रुके थे तो विदा के समय हमने उसे वचन भी दिया था कि हम तुम्हें लेने के लिए तुम्हारे ससुराल आएंगे।
सप्ताह बाद उसको लेने के लिए उसके भैया भाभी ने जाना था हम इंतजार करते रहे कि कब रानी के भैया भाभी हमारे घर आएंगे और हमें साथ चलने के लिए कहेंगे लेकिन पाठकगण वह ना तो हमारे घर आए और ना ही उन्होंने हमको जयपुर चलने के लिए बुलावा दिया। उस समय इतनी ज्यादा फोन की सुविधा नहीं थी हालांकि रानी के घर में तो फोन था परंतु उसमें हमें फोन नंबर नहीं दिया था।
हम तीनों सहेलियां जब भी मिलते थे तो रानी के बारे में ही बात करते थे। बहुत दिनों बाद हमने रानी के घर जाकर उसके हाल-चाल जानने का फैसला किया वहां पर उसकी मम्मी और भाभी ने बताया कि वह अपने ससुराल में बहुत खुश है और उसके ससुराल में बहुत से संसाधन है।
हमारे पूछने पर कि जब वह आई तो वह हमसे मिलने क्यों नहीं आई तो उसकी भाभी ने कहा कि वह अपने ससुराल की बहुत लाडली हो गई है तो उसके पति साथ आए थे और वह केवल एक ही दिन रही थी। उन्होंने बताया कि रानी हमें बहुत याद कर रही थी ।
हम को रानी से बिना मिले बहुत दिन हो गए थे और हमें इस जवाब से ना तो संतुष्टि हुई और ना ही अच्छा लगा। उसके बाद हम कॉलेज इत्यादि में व्यस्त हो गए लेकिन रानी की याद हमेशा आती थी एक बार उसकी भाभी ने ही बताया कि रानी के बेटा हुआ है परंतु अगर मैं मायके भी आती होती तो भी वह हमसे मिलने उसके बाद कभी नहीं आई। समय बीता गया हम भी विवाह होकर अपने घरों से दूर चले गए। रिटायरमेंट के बाद हमारे पापा ने भी अलग-अलग जगह पर अपना निवास बनाया।
आज भी मैं, गीता और मीना जब भी मिलते हैं और फोन पर बातें करते हैं तो रानी को जरूर याद करते हैं। हमें नहीं मालूम हमारे दोस्त रानी अब कहां होगी लेकिन हम यही सोचते हैं कि वह जहां भी होगी बहुत खुशी ही होगी और शायद व्यस्तताओं के कारण ही वह हमसे नहीं मिली होगी काश आज यह कहानी हमारे दोस्त रानी भी पढ़ रही हो और इसमें कमेंट भी करे।
जी पाठक गाना दोस्ती ऐसा ही रिश्ता है जो केवल मन से होता है वह किसी से मिलने का मोहताज नहीं होता रानी आज भी हम तीनों की पक्की सहेली है और हम तीनों की बातों में हमेशा रहती है।
