पुरुष एटीएम और स्त्री मॉडल नहीं होती।
पुरुष एटीएम और स्त्री मॉडल नहीं होती।
बेटा जैसा तुम चाहते हो तुम दोनों का तलाक तो हो ही जाएगा परंतु उसके बाद में तुम लोगों के लिए केवल एक भटकाव का ही रास्ता बचेगा। हमारे पूरे खानदान में कभी ऐसा नहीं हुआ। हरिप्रसाद जी और बाबूजी दोनों अमन और मान्यता को समझा रहे थे। थोड़ी देर बाद अम्मा मान्यता को कमरे में ले गई। आइऐ आपको उनके परिवार से मिलाएं। रामप्रसाद जी गांव के गणमान्य व्यक्ति थे। उनके तीनों बेटे शहरों में अच्छे पदों पर कार्य करते थे और वहां ही रहने लगे थे। गांव में उनकी बहुत सी जमीन थी जिसमें कि कुछ सरकार द्वारा भी एक्वायर कर ली गई थी उन्होंने अपने तीनों बेटों को बराबर हिस्सा दिया था । इसके बावजूद भी गांव में बाबूजी के पास बहुत बड़ी हवेली और आसपास की कुछ जमीन और दुकानों का किराया भी आता था। बहुत सी सब्जियां और फल तो उनके खेतों में ही लगते थे। बाबूजी अम्मा और सेवक रामू के साथ अकेले ही गांव में रहते थे। सब बेटे बहु समय मिलने पर बाबूजी के पास आते जाते रहते थे।अमन उनके बड़े बेटे रामेश्वर का बेटा और उनका पोता था। रामेश्वर की कुछ सालों पहले ही डेंगू के कारण अस्पताल में मृत्यु हो गई थी तो बाबूजी रामेश्वर के बेटे अमन को कुछ ज्यादा ही प्यार और सहयोग दिया करते थे। कभी-कभी बाबूजी और अम्मा अपने बेटों से मिलने उनके शहरों में भी जाया करते थे। दिल्ली में बेटे रामेश्वर की मृत्यु के बाद उनका जाना अधिक ही होता था। अमन की बहन स्मिता का विवाह भी रामप्रसाद जी ने बहुत अच्छे से संपन्न करवाया था। रामेश्वर की मृत्यु होने के पश्चात अमन को भी विदेश में आगे पढ़ाने के लिए बाबूजी ने काफी पैसे दिए थे। पढ़ाई पूरी करने के उपरांत अमन की बहुत अच्छी पैकेज के साथ मुंबई में नौकरी लग गई थी। उनके और बेटे बहू जो कि क्रमशः बैंगलोर और अहमदाबाद में रहते थे,वो भी बाबूजी का बहुत आदर और प्रेम करते थे। नौकरी लगने के उपरांत अमन मुंबई में ही रहने लगा था। दिल्ली में भी इनका घर बहुत बड़ा था और उसकी बहन स्मिता विवाह के पश्चात भी उनके घर की ही दूसरी मंजिल में रहती थी इससे अमन को मां की चिंता भी नहीं होती थी। गांव के ही बाबूजी के दोस्त हरी प्रसाद जी की पोती मान्यता, जो कि पुणे में रहती थी, के साथ बाबूजी ने ही अमन का विवाह करवा दिया था। विवाह के पश्चात बाबूजी मां और सब की चिंता काफी कम हो गई थी क्योंकि अमन अब अकेले नहीं अपितु मान्यता के साथ ही मुंबई में रहता था। अमन क्योंकि विदेश से पढ़कर आया था और अब बहुत अच्छे पैकेज पर भी था तो उसे सीधी सादी ग्रेजुएट मान्यता अपने अनुरूप नहीं लगती थी। मुंबई की रात की कॉरपोरेट पार्टियों में जाना , दोस्ती यारी यही उसकी दुनिया बन चुकी थी। मान्यता के साथ रहना उसे बंधन प्रतीत होता था। धीरे-धीरे मान्यता ने भी खुद को अमन के अनुकूल बनाने की चेष्टा करी और वह भी अमन के रंग में ही रंगती जा रही थी। पार्टी, यार ,दोस्त, गाड़ी,और थोड़ी-थोड़ी बीयर पीने से की गई शुरुआत अब मान्यता की आदत में तब्दील हो चुकी थी। पार्टियों की तो वह जान बन चुकी थी। अमन भी मान्यता के बदले रूप को देखकर खुश था। गांव में तो छोड़ो अमन को अपनी मां के पास दिल्ली गए हुए ही जाने कितना समय बीत गया था। कुछ ऐसा ही हाल मान्यता का भी था। सब कुछ सही चलता रहता अगर एक दिन वह मनहूस मेल नहीं आती। रिसेशन के कारण कंपनी में हुई छंटनी से उसकी भी नौकरी चली गई। अब जब धरातल पर कदम रखे तो पाया कि उन दोनों ने बचत तो लगभग ना के ही बराबर की थी इसके अतिरिक्त गाड़ी का और फ्लैट का और भी कई लोन तो सिर पर ही चढ़े हुए थे। हर महीने पार्टी के साथ जो कमेटी डाली हुई थी उनके पैसे तो देने जरूरी ही थे। क्रेडिट कार्ड से की गई खरीदारी की पेमेंट तो करनी जरूरी ही थी।अब जब धरातल पर आए तो दोनों ने पाया कि अमन अब एटीएम नहीं रह गया था और मान्यता महंगी ब्यूटी पार्लर और ब्यूटी ट्रीटमेंट के अभाव में अब मॉडल सी सुंदर नहीं रह गई थी। तनाव की लकीरें उसके चेहरे पर स्पष्ट नजर आती थी। लोन पर लिए फ्लैट बेचकर दिल्ली जाने के अतिरिक्त उनके पास अब कोई रास्ता भी तो नहीं रह गया था। ऐसा ही किया गया बहुत कोशिश करने पर भी इस रिसेशन के टाइम में कोई नई नौकरी उतने पैकेज की मिल नहीं रही थी और कम पर वह ज्वाइन नहीं करना चाह रहा था। फ्लैट और कुछ सामान बेचकर जब वापस दिल्ली गए तो मां को तो बहुत अच्छा लगा। मां और स्मिता ने उनका बड़े प्रेम से स्वागत किया। दिल्ली में जाने पर उनके रहने सहने हर तरह के ढंग ही बदल चुके थे अवसाद दोनों पर हावी हो चुका था जो कि कभी भी गुस्से का रौद्र रूप ले लेता था। पुणे की रंगीन यादें भूलकर वह अपने आप को घर के माहौल में ढाल ही नहीं पा रहे थे। मां हैरान थी कि घर में शराब की लत तो किसी को भी नहीं थी। अपनी बहू को इस रूप में तो वह भी स्वीकार नहीं कर पा रही थी। मान्यता खुद को बहु के रूप में ढ़ाल ही नहीं पा रही थी और मां का परेशान होना स्मिता को भी अवसादग्रस्त करता था। स्मिता ने मान्यता को समझने की कोशिश करी तो एक दिन गुस्से में मान्यता घर छोड़कर चली गई थी। उसके बाद मां के कोशिश करने के बावजूद भी अमन को अवसाद से निकाल कर अपने जीवन को दोबारा से आरंभ करने के लिए तैयार नहीं कर पा रही थी। बहन स्मिता ने भी अमन को समझाने की बहुत कोशिश करी लेकिन वह कुछ सुनता ही नहीं था। अभी कुछ दिन पहले ही अमन के पास मान्यता द्वारा तलाक का नोटिस आया। यह खबरें शायद बाबूजी को भी गांव में पता चल गई थी वह भी अम्मा के साथ दिल्ली आ गए थे । शायद उन्होंने ही हरी प्रसाद जी से कुछ कहा होगा क्योंकि दूसरे ही दिन हरी प्रसाद जी भी मान्यता को लेकर घर पर आ गए थे। इससे पहले कि मान्यता और अमन कुछ भी कहते बाबूजी ने हरी प्रसाद जी के सामने अपना निर्णय सुना दिया। उन्होंने अमन से कहा कि जीवन में सफलता और असफलता दोनों ही आती है और उनमें सम रहना ही जीवन में आने का एकमात्र उद्देश्य है जो कि जीवन तुम्हें सिखाना चाहता है। पुरुष एटीएम मशीन नहीं होता और नारी केवल सुंदरता की प्रतिमूर्ति नहीं होती। घरों के अपने नियम होते हैं। हमारे घरों में विवाह सात जन्म का बंधन होता है इसलिए हमारे घरों में तलाक नहीं होते। हरिप्रसाद जी भी मान्यता को घर में छोड़ते हुए बोले मैं अपनी पोती के पूर्णतया साथ होता अगर मुझे पता लगता कि इस पर कोई अत्याचार हो रहा है। ऐसी लड़की जो संस्कार न समझे , जिसमें सेवा भाव ना हो उसकी मेरे घर में कोई आवश्यकता नहीं है। मैं आप सबसे क्षमा मांगता हूं कि जाने अनजाने आपके घर के पतन में मेरा भी योगदान है। ऐसी कुसंस्कारी बेटी का तो मेरे बेटा बहू यानी की मान्यता के माता-पिता भी साथ नहीं देंगे। मान्यता की आंखों में आंसू देख कर अम्मा मान्यता को अंदर कमरे में ले गई थी। बाबूजी ने भी गुस्से में अमन से कहा कि तुम्हारी मां मेरी बहू है और यह केवल मेरी बहू ही नहीं अब यही मेरा बेटा भी है। तुम्हें मैं इन्हें तंग करने का हक नहीं देता। रामेश्वर के जाने के बाद इसने तुमको और स्मिता को कैसे संभाला भूल गए क्या? अगर यह चाहती तो अपने लिए या तुम्हें अपने पास रोक सकती थी परंतु तुम्हारी तरक्की के लिए इसने तुमको भी विदेश भेजना भी स्वीकार कर लिया था। अब तुम दोनों इसकी सेवा करने की बजाए उनकी परेशानी का कारण बन रहे हो। अगर मान्यता हरिप्रसाद जी के घर में नहीं रह सकती तो मैं तुमको यहां भी नहीं रहने दूंगा। बाबूजी का कहना तो सभी मानते थे। स्मिता और अमन की मम्मी में तो बाबूजी की कोई भी बात काटने की हिम्मत ही नहीं थी। बाबूजी अमन और मान्यता को आग्रह करके अपने साथ गांव ले गए। उसके पश्चात उन्होंने अपनी दुकानों और खाली पड़ी जमीन में गांव में ही पहला आईटी सेंटर खुलवाया और बहुत कोशिशों के पश्चात उस आईटी सेंटर को सरकार से मान्यता भी मिल गई थी। बाबूजी की गांव की जमीन पर गांव में पहला आईटी शिक्षण संस्थान बन चुका था। मान्यता भी वहीं योगदान करती थी ।अमन और मान्यता की मेहनत से आज गांव में भी बहुत से बच्चे आईटी की शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं और अब वह दोनों परिवार और रिश्तो की अहमियत भी समझ चुके । आज गांव मे सब उनका बहुत सम्मान करते हैं । रिसेशन के बाद अमन के पास फिर अच्छे पैकेज वाली नौकरी का ऑफर तो आया है लेकिन वे दोनों अब उस चकाचौंध की दुनिया में वापस नहीं जाना चाहते। गांव में ही सब की सेवा कर उन्होंने सच्ची खुशी प्राप्त कर ली थी। अमन और मान्यता के दोनों बच्चे होने के उपरांत अब अमन की मम्मी भी अधिकतर समय गांव में ही बितातीं थी। बाबूजी और अम्मा भी अत्यधिक वृद्ध होने के कारण अब अपना अधिकांश समय घर में ही बिताते हैं। उनके दोनों बेटों के बच्चे भी आते जाते रहते थे अब क्योंकि मेरठ के इस गांव का भी का भी शहरीकरण हो रहा था और रामप्रसाद जी के बैंगलोर में रहने वाले पोते ने भी डॉक्टरी करने के उपरांत गांव में ही एक बड़ी सी क्लिनिक भी खोलने का फैसला किया। रामप्रसाद जी का परिवार समझ चुका था सच्ची खुशी सबके साथ ही मिलती है। ।

