मैंने अपनी मां से सीखे हैं।
मैंने अपनी मां से सीखे हैं।
रीना गर्मियों की छुट्टियों में अपनी जिठानी नीता के पास रहने को जाती थी। राजेश के पिता तो थे नहीं उसके बड़े भाई और नीता भाभी ने ही उसकी माता और उसका बहुत ख्याल रखा था। पढ़ लिख कर राजेश तो गुडगांव में ही सॉफ्टवेयर इंजीनियर लग गया था और रीना एक स्कूल में टीचर थी। राजेश के बड़े भाई सुमित आगरा म्युनिसिपैलिटी में ही क्लर्क थे।
नीता भाभी बहुत अच्छी थी और मां की मृत्यु के बाद भी हर साल छुट्टियों में राजेश और रीना गांव में नीता भाभी और भैया से मिलने जरूर जाते थे।
गांव जाने पर पर भाभी उनसे बहुत प्यार से मिलती थी और शाम को बड़े भैया के आने के बाद सब साथ मिलकर ही भोजन करते थे। सबके साथ बैठकर खाने के कारण बहुत खुशनुमा माहौल में पुरानी बातों को और पुराने समय को ताजा करते हुए दोनो भाई खुशी खुशी खाना खाया करते थे। नीता भाभी के हाथों में प्रेम का स्वाद कहो नीता भाभी खाना बहुत अच्छा बनाती थी, इतनी दिन खाना बहुत मन से और भूख से ज्यादा ही खाया जाता था।
ऐसा नहीं कि खाना रीना को बनाना ना आता हो। अपने घर में वह ही खाना बनाया करती थी लेकिन वहां ऑनलाइन खाना मंगवाने की की सुविधाएं ज्यादा होने के कारण वह अक्सर बाहर से ही खाना मंगवा लिया करती थी। राजेश तो दफ्तर में खाना खाता था वह कभी अपना लंच लेकर के भी नहीं जाता था। उसकी मंच में बहुत अच्छा खाना मिलता था ऐसा वह स्वयं ही बताता था।
अब यहां सब के लिए खाना बनता था। रीना अपनी तरफ से पूरी कोशिश करती थी कि वह भाभी का रसोई में हाथ बंटवाए लेकिन फिर भी उसे लगता कि वह नीता भाभी जितना अच्छा खाना नहीं बना पा रही थी हालांकि नीता भाभी ज्यादा मसालों का भी इस्तेमाल नहीं करती थीं और नीता भाभी जब भी रसोई से निकलती थीं रसोई एकदम साफ होती थी। शहर में रीना को केवल उन दोनों का ही काम होता था फिर भी रसोई में काम करते हुए उसे हमेशा समय का अभाव ही लगता था इसलिए वह अधिकतर ऑनलाइन खाना ही मंगवा लिया करती थी। नीता भाभी को सारे घर का खाना बनाने के बाद भी रीना से बहुत सी बातें करने और उस के छोटे-मोटे काम करवाने का भी समय मिल जाता था
रीना की रसोई में अक्सर खाना बच जाता था जो कि वह काम वाली को दे दिया जाता था लेकिन नीता भाभी की रसोई में कभी भी कुछ भी फेंकने लायक बचता ही नहीं था।
नीता भाभी रात की बची रोटियों को भी अपने बच्चों को उन रोटियों को दही में डालकर और मसाले और लाल सोंठ डालकर दही बड़ों के जैसे खिला देती थी सच में वह बहुत टेस्टी लगता था। बची हुई दाल या सब्जी के पराठे बना कर जब भी वह कभी राजेश को या की सोमेश को खिलाती थी तो वह इतनी टेस्टी लगते थे मानो नाश्ते के लिए कोई नई डिश बनी हो।
हालांकि गुड़गांव में वह दोनों कमाते थे लेकिन फिर भी सुख शांति सिर्फ अकेले जेठ जी के कमाने पर ही उनके घर में थी । नीता भाभी के घर में भले ही उनकी जितनी कमाई ना आती हो लेकिन फिर भी उनके घर में सुख शांति और सामान का कोई अभाव नहीं दिख रहा था। बातों ही बातों में जब रीना ने नीता भाभी से कहा भाभी मैं भी यूट्यूब से सीख कर कई बार अच्छी डिशेस भी बनाती हूं लेकिन फिर भी मेरे हाथों में स्वाद क्यों नहीं आता? मेरी रसोई भले ही डिज़ाइनर है लेकिन आपकी रसोई जितनी साफ क्यों नहीं रह पाती? हंसते हुए नीता भाभी ने जवाब दिया क्योंकि तुमने सब कुछ बनाना यूट्यूब से सीखा है और मैंने मेरी मां से!
हम घर में इतने भाई-बहन थे कि हम कभी भी कोई भी चीज फालतू समझ कर कभी नहीं फेंकते थे। बचे हुए चावल को भी सुखाकर हमारी मां तलने के लिए नमकीन तैयार कर लेती थी। रात की बची रोटियों को ही छाछ या लस्सी में डालकर हम दही बड़े का रूप दे देते थे सब्जी ना होने की स्थिति में हम बासी रोटियों को ही प्याज टमाटर का छौंक लगाकर सब्जी के जैसे ही खाकर स्कूल चले जाते थे। हमारे परांठे हमेशा रात की बची दाल या सब्जी से ही आटा गूंदने के बाद बनते थे। रसोई में जब मेरी मम्मी ने मुझे खाना बनाना सिखाया था तो वह हमको प्रैक्टिकल करवाते समय दिखलाती थी कि सब्जी में प्याज और टमाटर कैसे भूना जाता है कितना गुलाबी होना चाहिए। हलवा बनाने के बाद जब तक हम उसे तब तक चलाना चाहिए जब तक कि वह घी ना छोड़ दे। खाना बनाने के बाद कभी भी हम सीधा ही रसोई से बाहर नहीं निकल सकते थे। पहले हमें खाना बनाने वाली जगह साफ करनी होती थी क्योंकि उनका ख्याल था चकले के गोल घेरे के आटे पर अगर किसी का पैर पड़ जाए तो ठीक नहीं होगा। उस समय हम नीचे बैठकर खाना बनाते थे। चकला बेलन और तवा यह कभी भी हम गंदे छोड़ ही नहीं सकते थे। वही आदत मेरी आज तक भी है कि मैं बर्तन साथ ही साथ ही मांज कर रख देती हूं इसलिए मुझे तुम्हारे घर की तरह किसी कामवाली का इंतजार नहीं होता और मेरी रसोई खाना बनने के साथ ही साथ साफ हो जाती है।
मेरी रसोई में बरकत या फिर यूं कहो कि साफ इसलिए ही रहती है क्योंकि मेरे पास में कुछ भी फालतू बचा हुआ फ्रिज में रखने नहीं होता। मैंने यह सब यूट्यूब से नहीं बल्कि अपनी मां से सीखा है। आज तुम सुबह खाते हुए जी सब्जी की तारीफ कर रही थी मालूम है वह टिंडे और तोरी के छिलकों की बनी हुई थी। हम मटर के भी छिलके फेंकते नहीं हैं अपितु उन्हें भी छीलकर सब्जी बना लेते हैं। रीना ने नीता से कहा भाभी आपको इतना टाइम कहां से मिलता है? नीता भाभी ने रीना को समझाया मुझे ऐसा लगता ही नहीं है कि वक्त की कमी है मैं जब भी खाली बैठी होती हूं तो सिर्फ खाली बैठने की बजाय मैं कोई सब्जी छीलती रहती हूं । यूं भी हम जब टेलीविजन में भी प्रोग्राम देखते हैं तो उस समय में मैं मटर छीलती रहती हूं या कि कोई और काम कर लूंगी अन्यथा स्वेटर तो बुना ही जा सकता है।
रीना नीता भाभी की बातों से बहुत प्रभावित थी उसने अपने मन में दृढ़ निश्चय कर लिया था अबके वह जब गुड़गांव जाएगी तो वह भी अपने सारे समय का सदुपयोग ही करेगी और बाहर से खाना नहीं मंगवाएगी। वह सब्जियां जो उसने कभी भी नहीं खाई थी वह भी इतनी स्वाद हो सकती हैं यह उसने और उसने ही क्यों उन दोनों ने जान लिया था। जाते हुए उसने नीता भाभी से कहा भाभी अब मैं भी अपनी भाभी मां से किचन के बहुत से टिप्स सीख चुकी हूं अब मुझे यूं ट्यूब से कुछ सीखने की जरूरत नहीं पड़ेगी। दोनों मुस्कुरा दीं।
