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Madhu Vashishta

Action Classics Inspirational

4.0  

Madhu Vashishta

Action Classics Inspirational

गृह स्वामिनी या हाउसवाइफ

गृह स्वामिनी या हाउसवाइफ

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हाउसवाइफ कहो या होममेकर यह सब इंग्लिश का कमाल है हमारी भारतीय संस्कृति में इन दोनों के लिए एक ही शब्द है और वह है गृहस्वामिनी।

समय के साथ मॉडर्न होते होते हम सिर्फ उलझ कर रह गए हैं कि हाउसवाइफ कहें या होममेकर। कहना शुरू करा की औरतों को मर्दों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलना चाहिए, जरूर चलना चाहिए पर कंधे से कंधा मिलाने की दौड़ में ग्रह स्वामिनी से होममेकर बनने की दौड़ में एक स्त्री में क्या कुछ खोया है यह सबके सामने है।

यह विडंबना नहीं है क्या कि आज हमारी कोई भी बेटी, डॉक्टर, टीचर फैशन डिजाइनर कुछ भी बनना चाहती है लेकिन हाउसवाइफ नहीं, गृह स्वामिनी नहीं। उसे यह कहने में बहुत गर्व महसूस होगा कि मैं किसी कंपनी में नौकरी करती हूं किसी स्कूल में टीचर हूं या किसी बैंक में हूं लेकिन उसे शर्मनाक लगेगा यह सोचते हुए कि मैं एक गृह स्वामिनी हूं। ऐसा क्यों हुआ भला? आज हमें से बहुत सी लड़कियां जो किसी भी ऊंचे ओहदे तक पहुंच पाईं क्या उन में योगदान उनकी गृह स्वामिनी माओं का नहीं है। क्या जिम्मेदार पिताओं का नहीं है? फिर भला यह सोच क्यों?

मैंने खुद ने समय के साथ नारियों के बढ़ते हुए सम्मान को देखा है और महसूस भी किया है। अपने घर से सरकारी नौकरी करने के लिए आज से 40 साल पहले मैं घर से निकली थी। उस समय सरकारी दफ्तरों में भी साथ वाले जिम्मेदार लोग अधीनस्थ और सहकर्मी औरतों को बहुत सम्मान और ख्याल रखते थे। स्त्रियां अपनी पोशाक पर भी पूरा ध्यान रखती थी ।लेकिन आजकल के इस मॉडर्न रवैये ने गृह स्वामिनी पद को ही बहुत छोटा कर दिया। बराबरी का और रवैया अपनाते अपनाते पुरुषों की नजर में उस समय हमेशा जो गृह स्वामिनी का पद ऊंचा होता था हाउसवाइफ बनते ही वह नीचे हो गया। अब हर पुरुष पूरे घर की जिम्मेदारी अकेले संभालने की बजाय इस बात में गर्व महसूस करने लगा कि उसकी पत्नी भी बराबर घर की जिम्मेदारियां निभाए। इसमें बुराई भी कोई नहीं है लेकिन वह इस बात में गर्व क्यों नहीं महसूस कर पाता कि घर का सारा काम और बच्चों को संभालने का काम भी वह खुद ही करेगा।

हमें आज भी याद है की हमारी माता जी भले ही कमा

ती नहीं थी अधिक पढ़ी-लिखी भी नहीं थी लेकिन पूरे घर को अपनी समझदारी से उन्होंने जैसे जोड़ रखा था ऐसा लगता था कि घर की सबसे सम्मानित वही हैं। आजकल घर और बाहर की दोनों जिम्मेदारियां उठाने के बावजूद भी स्त्री को वह सम्मान मिलता है क्या?

गृहस्वामिनी बनके नारी का बहुत सम्मान था, प्रत्येक पुरुष को पता था कि घर को चलाना और अपने घर की प्रत्येक स्त्री की जरूरतों को पूरा करना उसका काम है और वह अपना काम सुचारू रूप से करता था। प्रत्येक स्त्री को पता था कि घर को स्वर्ग बनाना उसका काम है और वह अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देकर, थोड़े में ही घर चलाने की, मितव्ययिता और सहनशीलता जैसे गुण अपने बच्चों में भर देती थी। लेकिन इस मॉडर्न समय में किसी भी पति का अकेले घर चलाना उसको परेशान कर देता है और वह उम्मीद करता है कि पत्नी उसका साथ दें भले ही उसका घर स्वर्ग हो या ना हो लेकिन संपन्नता जरूर होनी चाहिए। भले ही आपस में प्रेम हो या ना हो, संतोष नहीं चाहिए सामान चाहिए। इसी अंधी दौड़ में फंसी लड़कियों ने भी अपने ऊपर दोहरा काम ओड़ लिया, इससे उन्होंने अपने पति भाई या किसी भी पुरुषों की नजर में अपने लिए सम्मान पाया हो या नहीं ,पता नहीं लेकिन सबको अपना प्रतियोगी अवश्य बना दिया।

ऐसी सिर्फ मेरी राय है, किसी के भी मन को दुखाना मेरा लक्ष्य नहीं है लेकिन आज दिन में घर से बाहर हर जगह पुरुष और स्त्री को या किसी भी रिश्ते को प्रेमपूर्ण ना पाकर केवल प्रतियोगी ही पाती हूं तो मन बेहद उदास हो जाता है और याद आता है अपना बचपन जहां हमारे माता-पिता में कोई प्रतियोगिता नहीं थी हमारे पिता सब कुछ घर के लिए अर्पण करते थे और माताजी हम बच्चों को के लिए प्यार और संतुष्टि भरा माहौल बनाती थी। उनका हर व्रत-त्योहार घर की सलामती के लिए होता था। ऐसा प्रेमपूर्ण घर इस मॉडर्न युग में संभव है क्या? एक बार पुनर्विचार की आवश्यकता है एक अंधी दौड़ दौड़ने की बजाए आत्म चिंतन की आवश्यकता है मैं उम्मीद करती हूं इसे पढ़ने के बाद शायद कोई और भी मेरे जैसे कुछ सोच रहा हो और उसके पास कहने को कोई विचार हो तो कृपया कमेंट अवश्य करें।


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