ये कैसा जुनून
ये कैसा जुनून
आशिकी का नया-नया जुनून था
जिंदगी से दूर
हम भी निकल गए ईश्क की तलाश में
जाने से पहले
दर्पण के सामने होकर खड़े
खुद को एक बार नहीं, कई बार संवारा
कई सवाल थे मन में
बेशुमार उलझनों के पहाड़ खड़े थे सामने
मंजिल मिली तो क्या होगा
गर नाकाम लौटा तो क्या होगा
खुद से सवाल करके ज़वाब ढूँढता
ऊबड़ खाबड़ रास्ते, टेढ़ी मेढ़ी पगडंडिया
बेईमान मौसम की बलखाती चाल
और भी न जाने कितनी बाधाएँ सीना ताने खड़ी थी
आशिकों के कारवां में हम भी थे शामिल
कुछ निराश, कुछ मायूस
कुछ मुस्कुराके बढ़ रहे थे
कुछ थके हारे, कुछ भूखे प्यासे
हाल हमारा भी कुछ अलग न था
जब सफ़र से हम वापस लौटे
तो आंखो में उदासी थी
और दिल में बेवफाई की चुभन
अब तलक सोच रहा हूँ
क्यों इस आग में सुलग रहे हैं दिलजले।