यादों की आलमारी
यादों की आलमारी
आज पुन: खोली है
मैंने यादों की अलमारी
जैसे लगता है इसमें
सिमट गई हो दुनिया सारी
याद आता है प्यारा बचपन
और खुशियों से भरा मन
नटखट नादान शरारतें
और मासूम-सी किलकारी
कभी रुठना कभी मनाना
कभी गुड़ियों के संग खेलना
कभी लपेटना कभी बांधना
मम्मी की वो साड़ी
सहेलियों के संग
कभी हंसना खेलना
कभी रूठकर उनसे
होती जंग लड़ने की तैयारी
छोटे भाई बहनों पर
कभी गुस्सा कभी प्यार जताना
कभी मम्मी की डॉंट से उन्हें बचाना
होती थीं मेरी ज़िम्मेदारी
कभी ज़मीं की बातें करना
कभी हवाओं में उड़ जाना
कभी कुछ कभी कुछ
पानें की थी बेकरारी
गुस्से में यूं गुमसुम बैठना
नहीं किसी से बातें करना
मन को बेहद भाती थीं
मां की ममता भरी पुचकारी
पेड़ों पर कभी चढ़ना
कभी छज्जें से लटक जाना
कभी सीढ़ियों की रेलिंग
होती थीं अपनी सवारी
खेल खेल में हम सब
बहुत कुछ सीखा करते थे
एक दूसरे के सहयोग की
होती थी अपनी भागीदारी
अल्हड़ सी थीं हरकतें
ना होता जीने का तरीका
मिलकर सब मस्त रहते
ना थी कोई जिम्मेंदारी
कभी कुछ लिखना
कभी सहेजना
खुद ही खुद से बातें करना
संग रहती मेरी डायरी
आज मैंने खोली जो
उन यादों की अलमारी
पुरानी बातें ताजा कर गई
मेरी यादों की अलमारी
समय के साथ सब बह जाते
एक जगह कहां रुक पाते
पर छोड़ कर कभी दुनियादारी
कभी खोलो यादों की आलमारी