याद और कल्पना
याद और कल्पना
याद याद होती है
कल्पना कल्पना होती है
हमेशा अपनी होती है
हमेशा अलग होती है
दोनों एक दूसरे के पूरक हैं
दोनों जिंदगी के उत्प्रेरक हैं
इनका हाथ जब हमसे छूटता है
जिंदगी का साथ भी छूटता है
पहुँच याद की सीमित होती है
पहुँच कल्पना की असीमित होती है
यादें महसूसती है रास्ते का खुरदरापन
यादें महसूसती है गलियों का संक्रापन
यादें मिलाती उन चेहरों और चौराहों से
कदम छूकर निकले थे जिन राहों से
एक थी मेरी प्यारी अल्पना बारह साल की
अब हो भी गयी होगी बयालीस साल की
यादों मे वही हसीन गुडिया बनकर आती है
कल्पना मे कांतिहीन अधेड़ बन जाती है
वो मेरी थी और मैं उसका था
घर भी एकदम आसपास था
एकसाथ होने का विश्वास था
अचानक एक रोज
उसके बाप का तबादला हुआ
मेरा हालत एकदम पतला हुआ
उसकी मासूम याद बहुत आयी
लेकिन बेरहम वो कभी नही आयी
यादें आज भी फ्रेम दर फ्रेम मिला देती
कल्पना उसे मोटा - पतला बना देती
कभी सुखमय कभी दारुण स्थिति में बताती
कभी निःसंतान,कभी नानी -दादी भी बताती
अतः आज भी :
यादों का ही सहारा है
कल्पना वाली अल्पना का क्या भरोसा
उसके अंदर जिंदा भी हूँ या मर गया।