वर्षा:ऋतुओं की रानी
वर्षा:ऋतुओं की रानी
राजा वसंत, वर्षा ऋतुओं की रानी
कह गए कबीर अपनी जुबानी,
बरसना ही अंकुरण की शुरुआत है
मानवता की बरसात ही तो है नानक की गुरबानी !
जैसे बरसती हैं आसमाँ से रिमझिम बूंदे,
वैसे ही कोई विरहिणी अपने प्रियतम की याद में
नम कर देती है नयन को अपनी !
और पहुंच जाता है मेघदूत के माध्यम द्वारा
संदेश उसका उसके प्रियतम के पास ।
जैसे बरसती है गगन से गर्जन भरी मूसलाधार बूंदे,
किसी किसान की आंखे नम हो जाती है,
जो अपने सन्तान की ही भाँति पाल - पोस कर
बड़ा कर रहा होता है फसल अपनी !
उसके भी अधरों से मुस्कान टपक रही होती है !
कारण की उसकी भी अर्जी वर्षा रानी के द्वारा सुन ली जाती है,
और साथ ही स्वीकृत भी हो जाती है !
सचमुच वर्षा ऋतुओं की रानी है !
ताल- तलैया सब भर जाते हैं,
सूखे और मुरझाए से फ़ूलों में नवजीवन का संचार हो जाता है,
कलियां खिल जाती हैं प्रसन्नचित्त होकर वर्षा रानी के आगमन की स्वागत में !
सचमुच राजा वसंत,वर्षा ऋतुओं की रानी
कह गए कबीर अपनी जुबानी !