वक़्त की बात
वक़्त की बात
वफ़ा का कोई मुझपे नशा सा छाने लगा है,
मुझे हर शख़्स बेवफ़ा नज़र आने लगा है,
प्यार भरम है काश कि पहले हम कहीं पढ़ लेते,
इश्क़-ए-हाल पे मेरे उनको तरस आने लगा है,
हिज्र के मंज़र अब हम जाकर सुनाएँ किसे,
खिलता चाँद भी अब तो हमेँ चिढ़ाने लगा है,
वक़्त वो भी था, तेरे दिलमेँ थे वक़्त ये भी है तेरी आरज़ू है,
जुस्तजू में तेरी ये दिल खुद को ही आज़माने लगा है,
रुख़सत हुए हो जो मुझसे यूँ अचानक इस तरह,
वो तिरा लम्हा-ए-दीदार मुझको अब रुलाने लगा है,
सुना है खड़ा हूँ, आज भी तेरी यादों की उसी दहलीज़ पे,
वक़्त भी सुनहरे पल, जो साथ गुज़ारे गिनाने लगा है
हो सके तो भूल जाना हमसे तुम्हारा राब्ता था,
रफ्ता रफ़्ता वक़्त भी निशां-ए-दस्तक-ए-दिल मिटाने लगा है,
बहा लेना दो अश्क़ गर मयस्सर हो वक़्त तुमको,
अहले वक़्त ने भुलाया है मुझको, ज़माना भी अब भुलाने लगा है।

