मलाल-ए-यार
मलाल-ए-यार
वो कौन सा मौसम था, तुम पहला प्यार बन के आए,
मेरी ज़िंदगी में तुम गुलज़ार बन के आए
सुनहरे दिन और चाँदनी रातों सी तुम,
ज़ुल्फ़ों के बिखरने से होश हो जाएं ग़ुम
अब लग जा गले से मेरे कि तू क़रार बन के आए,
ज़रा ज़रा सी खुशियां भी अब मयस्सर नहीं हमको,
गर लौट आओ फ़िर तुम तो बेशुमार बन के आए
तेरी यादों के झोंकों में मेरे अरमान रक्स करते है
यूँ राग कोई भी छेड़ो बस मेघ मल्हार बन के आये
तेरे बग़ैर, इन हवाओं से तेरा हाल पूछूँ
मैं दिल के जज़्बातों का कैसे गुबार बन के आये
मेरी हालत अच्छी नहीं कुछ तो दुआ करो चला जाऊँ
गर दुनिया से तो शायद मज़ार बन के आएं
इस जनम तुझे पा न सके इसका तो मलाल है
मगर अगला जनम मेरी चाहत में तेरा इंतज़ार बन के आए
चला जाता हूँ गुमनाम राहों पर किसी दिशा की खोज में तेरी एक झलक,
मेरी डूबती कश्ती की पतवार बन के आये
तेरी बिछड़न मेरी ज़िंदगी और पतझड़ सा मौसम
तू ही बता कैसे हम मिलें, कि बसंत बहार बन के आये।

