वो साथ भी है ...पर मेरे साथ न
वो साथ भी है ...पर मेरे साथ न


किसे दोषी ठहराया जाए..!?
मुझे या मेरे मन को!?
प्यार मैंने किया ये गलत था या प्यार एकतरफा हुआ ये गलत..
समाज, जातिवाद को दोषी ठहराऊं या मेरे प्रेमी को
जिसकी प्रेमिका तो मैं ना रही वो मेरा प्रिय जरूर रहा..
इतनी समझदारी की एक पल में ही सब बदल कर रख दिया ,
मेरा सबकुछ बदल गया,
मेरे लम्हे ठहर से गये हैं..
काश कोई मेरे इस बिखराव को फिर से समेटकर गले लगा सके....
साथ होकर भी मेरे साथ नहीं...
किसे दोषी ठहराए..