ओह मेरे जीवनसाथी
ओह मेरे जीवनसाथी


लिखूं नज़्म कोई तुझपर,
ग़ज़ल का खुद लिबाज़ हो तुम,
मुक़्क़मल इश्क़ मे डूबे हुए शायर....
सौम्या का लफ्ज़ ए खास हो तुम.
जो अल्फाज़ों से न हो सके बयाँ...
इस दिल का हसीन ख्वाब हो तुम...
जो मिट के भी ना मिट सकें उम्रभर
ऐसे ही इश्क़ के इक एहसास हो तुम....
पता नहीं जिस्म से जिस्म कैसे मिला लेते हैं लोग......
हमारी उनसे नज़रे भी मिल जायें
तो हमे होश नहीं रहता.. ...
मत समझिये कुछ पास नहीं मेरे.....
शायर हूं नाम तेरे आशिकी
और ये जिंदगी लिख जाऊंगी..