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Saumya Singh

Others

3.2  

Saumya Singh

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मैं इक शायरी सी...

मैं इक शायरी सी...

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मैं इक कहानी सी... जिसे सुनना पसन्द है

मैं इक कविता सी जिसे पढ़ना पसन्द है

मैं इक ख्वाब सी जिसमें खो जाना पसंद है

मैं इक हवा सी जिसे बहना पसन्द है

मैं इक खुली किताब सी, जिसके पन्ने बिखरे से हैं पर वो पसन्द हैं।।

पर खुली किताब समझ ...बिखरे पन्नों के लिखे जज्बातों पर

कभी न हंसना क्योंकि हमें नहीं पसन्द कोई सामने अच्छा बने

पीठ पीछे हंसता फिरे हमें नहीं पसन्द है।


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