शब्दों के मोती
शब्दों के मोती


मैं खुद को समझ लूँ ज़रा और बेहतर
अगर हाल ये हो थोड़ा और बदतर
माहिर हो जाऊ खेल मे ज़िंदगी के,
अगर मुश्किलें साथ दे ज़िंदगी भर।
मैं समझू चांदनी में छुपी गम की आहें,
उसका भी दर्द समझू जो कभी ना कराहे,
मुस्कुराते हुए चेहरे का दर्द समझूँ,
जिसकी आँखों मे आंसू न आए घड़ी भर।
असफलता का उत्सव मनाना भी सीखूं,
विजय को हृदय में दबाना भी सीखूं,
ज़िंदगी का हर एक-दांव पहले समझ लूँ,
बस इतना सा हो नियंत्रण मेरा ज़िंदगी पर।
मेरे किस कथन का कहाँ क्या असर है,
समझूँ किस मीठी वाणी मे विष का बसर है,
किस तीक्ष्ण वाणी मे है प्रेम समझू,
जानूँ की मैं करना भरोसा है किस पर।
जियूँ ज़िंदगी जब तक बस प्रेम बांटू,
ले लूँ दर्द सबके मैं चेहरे खिला दूँ,
आखिरी तक समझ जाउँ क्या ज़िंदगी है,
मिले मुझको इतने सबक ज़िंदगी भर..।
माहिर हो जाउँ खेल मे ज़िंदगी के,
अगर मुश्किलें साथ दें ज़िंदगी भर।