वो मुस्लिम, मैं हिंदू
वो मुस्लिम, मैं हिंदू
वह मुस्लिम एक पाक था
और मैं हिंदूओ की जात थीं
हकीकत में मिलना होता नहीं था
ख्वाबो में हमारी हर मुलाक़ात थीं
मोहब्बत हो गई थी जाने अनजाने में
हमें लगा कयामत आनेवाली है
हमारे प्यार की दास्ताँ भी शायद
कोई नई कुर्बानी लिखने वालीं है,
दोनों परिवार में समझदारी थी
वो हमारीे शादी के लिए राजी हुए
हिंदू मुस्लिम के जात छोड़कर
वो इंसानियत के फरियादी हुए
मुकम्मल हो गई थी चाह हमारी
किसी का बीच में आना नामुमकिन था
बस हर बाधाओं को मिलकर तोड़ेंगे
हमें अपने प्यार पर पूरा यकीन था,
अब लोग प्यार को समझते और
हमारें प्यार की मिसाल देते थे
रूठने और मनाने के तरीके तो
लोग हमसे ही सीख लेते थे
बस गुजरती रही हस्ती हमारी कि
जिंदगी में अचानक तूफान आया
आंख खुली उन्हें झेलने के बाद तो
कुछ नया पहलू मेरे सामने आया
उस दिन एक बात समझ आयीं,
जिंदगी एक सी कहाँ चलती है
चाहता तो हर कोई है लेकिन
उन्हें हर खुशियाँ कहाँ मिलतीं है
बस यूँ समझों कि
जहां इंसान का बस नहीं चलता
वहां खुदा की ताकत होती है
जिसे धर्म अलग नहीं कर सकता
उन्हें मौत जुदा कर देतीं हैं।

