विवाह संस्कार।
विवाह संस्कार।
विवाह एक रस्म नहीं संस्कार है।
समाज में एक दूसरे के प्रति विश्वास का व्यवहार है।
जीवनसाथी बनकर साथ निभाएंगे एक दूसरे का जीवन भर।
अब दोनों को ही बनना एक दूसरे का संसार है।
संसार के सारे ऋण अब चुकाने होंगे।
देव तुल्य देवदूत बनकर अब बच्चों के भविष्य भी बनाने होंगे।
खुशियों के पल कर्तव्य निभाते हुए ही चुराने होंगे।
एक दूसरे के प्रति विवाह की रस्मों को निभाते हुए करे थे जो वादे वह निभाने होंगे।
विवाह संस्कार एक बंधन नहीं अपितु मुक्ति है।
प्रेम की पराकाष्ठा की एक दूसरे के प्रति होती अभिव्यक्ति है।
विवाह के समय प्रत्येक पति पत्नी होते हैं विष्णु और लक्ष्मी के रूप पालनहार।
दोनों मिलकर करेंगे इस दुनिया में अपना और सबका उद्धार।
