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सीमा शर्मा सृजिता

Abstract Inspirational

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सीमा शर्मा सृजिता

Abstract Inspirational

विधाता

विधाता

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जो बीज रोप दिया था तुमने

मुहब्बत का मेरे दिल में 

आज बन खड़ा है एक विशाल वृक्ष 

जिसकी जड़ें पहुंचती हैं 

तुम्हारी धड़कनों तक


जो नींव डाली थी तुमने 

मेरे हृदय के कोने में 

बेशुमार चाहत की 

आज बन खड़ी हुई है एक अद्भुत इमारत 

जिसकी हर दीवार पर लिखा है तुम्हारा नाम 


मैं अनपढ़ थी और तुम निकले 

हैडमास्टर इश्क के विद्यालय के 

सहज ही सिखा गये प्रेम के ढाई आखर 

मेरी पीठ को स्लेट बना अपनी उंगलियों से 

मैं सीखती गई और देखो आज पी. एच. डी हूं 


कहां आता था मन के भावों को शब्दों का जामा पहनाना 

वो तो तुम्हारी प्रीत थी 

जिसने लिखवाई मुझसे पहली कविता 

सोचा था सुनाऊंगी तुम्हें एक दिन 

वक्त गुजरता रहा और मैं लिखती गई 

और फिर देखते ही देखते 

एक दिन 

बन ही गई सीमा से "सृजिता"

तुम नहीं जानते तुम विधाता हो 

सृजिता के..... 



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