तू मेरा एलियंस..!
तू मेरा एलियंस..!
अद्भुत था वो,
बिल्कुल सबसे अलग
विचित्र सी वेशभूषा बनाए हुए
अक्सर दिख जाता था वो
कभी चाय की चुस्कियाँ लेते
तो कभी किसी को सलाह देते /
या फिर..
कुछ नहीं तो बेवजह सबसे उलझते हुए
मुझसे सांझा कर लेता अपनी दिल की बाते..!
कोई दिव्य प्रकाश पुंज से उत्पन्न
कह दिया करती थी मैं
सुन..!
तू तो यहाँ का है ही नहीं
किसी दूसरे गोले ( ग्रह) का प्राणी तू
तेरी हस्त रेखा भी अजीब
रोज ही मिटती है
या सपाट दिखती ही नहीं..!
जाने क्यों...?
पर था वो सबसे अलग
किसी एलियंस सा
सब कुछ तो दिखता था उसको
सिवाय अपने आप को छोड़
कभी मृत आत्माएं दिख जाती
तो कभी किसी बीमार को यूँ ही ठीक कर देता
मुक्ति धाम से तो मानो जन्म जन्मांतर का रिश्ता हो..!
कुछ भी हो पर था वो नितांत अकेला
सचमुच था वो कोई एलियंस ही
बिल्कुल दूसरे ग्रह के प्राणी सा
सदैव सामंजस्य बनाता पर कर नहीं पाता
ना सीने की अवधि निश्चित
ना खाने पीने फिक्र ..!
हाँ...!
मेरे लिए वो इस धरती का नहीं था
पर मेरे लिए सब कुछ कुर्बान करने को तत्पर
वो मेरा एलियंस..!
जाने कैसे और कहाँ से आया था
वो एक दिव्य प्रकाश पुंज...!
मैं नहीं बन सकी उस जैसी दिव्य पुंज..!!