तुम सा ही अक्स
तुम सा ही अक्स


आपूर्तियों को पूरी तरह,
पूर्ण कर जैसा तुम चाहती हो
वैसा कर देना चाहता हूँ मैं !
तुम्हें मस्त मौला सा वही
पहर दे देना चाहता हूँ मैं ,
जिस पहर में हो सिर्फ मैं
और तुम और कोई नहीं !
चाहे जैसे भी हो हू-ब-हू
तुम्हारी सी आकर्षक,
देह का अक्स तुझ में
उतार देना चाहता हूँ मैं !
बर्फ की सिल्लियों सी
पिघलती हुई हमारे मध्य,
की तमाम भाव भंगिमाओं को !
चुन-चुन कर अपने अनुराग
के सिल्की मज़बूत धागे में ,
पिरो देना चाहता हूँ मैं !