तुम क्या करते ?
तुम क्या करते ?
जैसे कोई चीज अनोखी कहीं अचानक खो जाती तो ?
थोड़ी-थोड़ी करते-करते पीड़ा गहरी हो जाती तो ?
चिट्ठी पत्री खतों किताबत कोई भी संवाद न होता ।
पीड़ा ऐसी भाषा होती जिसका कुछ अनुवाद न होता ।
पीड़ा के सम्मुख रोते या, पीड़ा को बाहों में भरते ?
तुम होते,
तो तुम क्या करते ?
बीहड़ बीहड़ एक रास्ता, बनी बनाई एक राह हो ।
भले मार्ग, शापित गलियां भी, जिस पर चलना तक गुनाह हो ।
दुनिया कहती जाना मुमकिन मगर न संभव वापस आना ।
तब तुम चलते नई राह पर या फिर चुनते मार्ग पुराना ?
लड़ते तुम सारी दुनिया से, या केवल अपने से लड़ते ?
तुम होते,
तो तुम क्या करते ?
जहां सभी ने अपने साहस, सारे भय को भेंट किए हो ।
केवल पथ को देख-देखकर अपने पांव समेट लिए हो ।
नाव बँधी हो वहीं घाट पर, लेकिन नाविक ऊब रहे हो ।
केवल आशंका में तट पर, बैठे-बैठे डूब रहे हो ।
तुम होते तो तुम बतलाओ, कहां डूबते कहां उबरते ?
तुम होते, तो तुम क्या करते ?