STORYMIRROR

Chitransh Waghmare

Drama Thriller

3  

Chitransh Waghmare

Drama Thriller

सोचता हूँ

सोचता हूँ

1 min
27.2K



आज संवेदन अगर

इस अंजुरी से झर गया तो

सोचता हूँ क्या तुम्हारे

और मेरे पास होगा ?


सोचकर देखो, समय ये

अजनबीपन बो गया तो ?

देह की थाती रही बस

मन कहीं पर खो गया तो ?


क्या हमें इन करवटों का,

ज़रा भी आभास होगा ?


अगर सचमुच बंट गए तो

हर महीने ख़त लिखूँगा,

किस तरह से ढो रहा हूँ

प्राण का पर्वत लिखूँगा ।


क्या मुझे उत्तर मिलेगा ?

क्या तुम्हे अवकाश होगा ?


सोचते होंगे अचानक

बात कैसी कर रहा हूँ ?

बात डरने की बहुत है

इसलिए तो डर रहा हूँ ।


डूबकर पढ़ना समय को

तब तुम्हें अहसास होगा ।।


कह रहा मन किन्तु फिर से

सामने हम खड़े होंगे,

हम ज़रा घटकर मिलेंगे

या कि कद में बड़े होंगे ।


फिर अगर हम मिल सके तो

क्या तुम्हें विश्वास होगा ?


फिर मिलेंगे तो समय का

देवता हमसे कहेगा,

हम पथिक होंगे विजन के

पास अपने क्या रहेगा ?


एक मुट्ठी धूप होगी

बाँह भर आकाश होगा ।।




Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Drama