मेघ का संवाद
मेघ का संवाद
भर गया भीतर हरापन
मेघ का संवाद आया।
आहटें मिलने लगी जब,
धुंध जमती खिडकियों पर,
बूँद आकर झर गई जब,
आज बूढ़ी पत्तियों पर ।
यों लगा जैसे किसी का
खत महीनों बाद आया।
झूमती फिरती हवा में,
सरसराहट भर गयी थी,
एक कूची बादलों का,
रंग गहरा कर गयी थी ।
एक भीनी सी महक थी
एक सौंधा स्वाद आया।
इस तरह बिखरे कि बादल,
खत सरीखे हो गए थे,
आसमानी डाकिए की,
पोटली से खो गए थे।
खत कहाँ होंगे, अचानक
डाकिए को याद आया।
झर रहा था किंतु चलता,
एक मंथर चाल सावन,
और फिर पिछले महीने,
आ गया भोपाल सावन ।
वो अलीगढ़ भी गया था
वो इलाहाबाद आया।
मेघ के उल्लास को तब,
स्वर न मिलता था झरन का,
और सुख मन में सिमटकर,
रह गया वातावरण का।
आज धरती पर उतरकर
हर्ष का अनुवाद आया।
