तुम हमेशा गुलाम ही रहोगे
तुम हमेशा गुलाम ही रहोगे
क्या तुमने आज़ादी का ख्वाब देखा है !
अगर हाँ तो क्या तुम अपने कदमों को सच्चाई के फर्श पर रखोगे !
अगर हाँ तो क्या तुम अपनी ज़िन्दगी की बुनियाद को इंसाफ के ईंटों से मजबूत करोगे !
अगर हाँ तो क्या तुम्हारे कलम से निकले हर हर्फ
किसान, मजदूर, शोषित, मज़लूम, ओर महिलाओं के हक़ में लिखे जायेंगे !
अगर हाँ तो क्या तुमने अपने अंदर के सत्तावादी धार्मिक मर्दवाद को खत्म कर दिया है !
और अगर नहीं तो फिर तुम एक ऐसा ख्वाब देख रहे हो जो झूठा है ओर तुम हमेशा गुलाम ही रहोगे !
