माँ, तेरे जाने के बाद
माँ, तेरे जाने के बाद
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अपनो की खातीर हम अपना मकान छोड़ आये
उन्हे चार दीवारों से मोहब्बत थी
हम सारा गुलिस्तान छोड़ आये !
सितम के जो तोहफे दिये थे
उन्ही के बाजार मे तोड़ आये
कुछ एहसास तो उन्हे भी बीछडने का होता
दर्द हमही क्यू सारा ओढ़ आये !
जाते वक़्त एक नज़र ही देख लेते
थम ज़ाते ये पैर अगर रोक लेते
कुछ चाहत न थी सिवा उनके दुआओं की
सर पर मेरे अपना हाथ ही रख देते
ये कैसी रिश्तों की डोर बांधी थी
कोई तूफान था य़ा आंधी थी
रेत सी फिसलती चली गयी
माँ, तेरे जाने के बाद
ज़िन्दगी बदलती चली गयी !