मुझे अपने घर जाना था
मुझे अपने घर जाना था
मेरा कसूर बस इतना सा था मुझे अपने घर जाना था
इतना पता था के मौत कभी ना कभी आयेगी
और एक दिन मर जाना था
पैरो के छाले ओर शरीर की थकान
तो सिर्फ एक बहाना था
असल में मुझे गहरी निंद लगी थी
और मुझे सो जाना था
ना कसूर सिर्फ उनका नहीं है
जो रेल चला रहे थे
कसूर उन हर एक का है
जो पीछे कुरसी पे बैठे
मौत का खेल चला रहे थे
मेरी मौत ने हमेशा एक हादसे का रूप लिया है
मेरी मौत के कातिलों के कई चेहरे है
इतना पता था के मौत कभी ना कभी आयेगी
शरीर थकान से लड़ रहा था
और पेट भूख से
कट के ना मरता
तो सूखता गला और भूख की तड़प मार देती
अगर और ज़िन्दा रहता तो
परिवार से मिलने की तड़प मार देती !
मेरा कसूर बस इतना सा था
मुझे अपने घर जाना था !!