तुझमें शिव है
तुझमें शिव है
ललाट पे जो राख हैं
सीने में जो आग हैं
भुजाओं में त्रिशूल हैं
अधर्मीओ पे क्रूर हैं
शेषनाग के सर्वत्र हैं
वो शिव पंचवक़्त्र हैं
जटाओं में तूफ़ान हैं
समाधी में वो मग्न हैं
सर्व गुण संपन्न हैं
कंठ उनका नील हैं
दानवों के काल हैं
वो महाकाल हैं
क्रोध का अंत हैं
घमंड का पतन हैं
ज्ञान की ज्योत् हैं
श्मशान की राख हैं
मौत की मात हैं
वो भैरवनाथ हैं
निःस्वार्थ तेरा चित्त हैं
न कोई भयभीत हैं
न कोई ब्रह्मित हैं
सत्य का जो मित्र हैं
करम तेरे पवित्र हैं
तो तुझमे ही शिव हैं...!
