तु आखीर नारी है---
तु आखीर नारी है---
पली पलकों पे माँ बाप की
राजकुमारी थी तू उस घर की
आँसू किसी ने न आने दिया
ख्वाहिशों को तेरी हर पूरा किया
झुला झुलाते थे पापा बांहों में
माँ के आँचल में सुनती थी लोरी
बस इक दिन हुई सयानी
इस घर से तेरी उठनी थी डोली
पली थी नाजों से, ये कली
आंगन बदला तो ,मुरझा सी गई
राजकुमार था जो जिससे तू ब्याही गई
बदला संसार
हो गई तू रानी से दासी
ना ख्वाहिशों को तेरी कोई मतलब रहा
ना मन की तेरे, किसी ने कि फिकर
आहों को तेरी किसी ने न सुना
कहलाती रानी तू इस घर की मगर
ना बस तेरा किसी पे चला
ना पुछा किसी ने तू भूखी है क्या
माँ का खिलाना नाजो से फिर याद आ गया
दायरा तेरी रियासत का फिर तय हुआ
रसोईघर तुझे फिर राज करने लिए मिला
इसके बाहर तू झाँकना नहीं
तू है घर की इज्जत
महफूज है यही
सोचना ना उड़ान भरने की
आजादी की
कतर दिए जायेंगे तेरे पर फिर
घूँघट ले ओढ़ ,पड़े ना नजर
दहलीज के ही तू भीतर रहना
है तू राजकुमारी महलों को
मगर तू आखिर नारी है ये कभी ना भूलना
झूठ है सारे तेरे सम्मान के ढिंढोरे
समानता की ओ बात हर झूठी
कही दी है क्या विरासत
ना हक बराबरी का
बस मूरत देवी की मंदिर में पुजते है
मदिरा पी फिर घर की देवी को पिटते है
ढकोसले कितने ये मानवता के करते है