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ठहरा वक्त

ठहरा वक्त

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राह थी सुनसान, घना था अंधेरा

मन में था खौफ, वक्त था ठहरा

सामने खाली मकां, रंग सुनहरा

खड़काई कुंडी, मन था सिहरा

निकला चौकीदार, था वह बहरा

उल्टे थे उसके पाँव, स्याह चेहरा

मैंने पूछा देते हो कैसे यहां पहरा

बोला सैकड़ों साल से हूं ठहरा

सुन उसकी बात नीला पड़ा चेहरा

भाग चला मैं, एक भी पल न ठहरा



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