तराने- सफ़र।
तराने- सफ़र।
जाने कैसे तो पड़ी मेरे हमसफ़र की मेरी हालत पर नजर।
वरना नाचीज मैं पड़ा था सुनसान सी डगर।।
शान -ए -उल्फत की जगह ढाया था वासनाओं ने कहर।
मेरी जिंदगी बनी थी राहे दोजख़ का सफ़र।।
बिन पिये ही नशा हरदम था सवार जो रहता-
बहा ले जाती थी तृष्णा मुझे अपनी ही लहर।
जाने कैसे तो पड़ी ...........।।
ये मेरे हमसफ़र की बड़ी है इनायत मुझ पर।
कि थामा है मेरी बाहों को मेरे हमसफ़र ने कसकर।।
कुछ बदला है मेरा "अहम" यह उनकी मोहब्बत का असर।
कि दुनिया वाले भी थोड़ी करते हैं कदर।।
बिगड़े मेरे नसीब को है उसने बदल डाला-
वरना मेरी जिंदगी बनी थी सैलाब -ए -जहर।
जाने कैसे तो पड़ी...........।।
है मेरे हमसफर ने पहले मेरी दुनिया को संवारा।
वरना मैं कब का ही था दुनिया से हुआ हारा।।
कैसे उनकी रहमतों का बयान मैं करुँ।
कि मिलता ही नहीं है कोई अल्फाज- ए- करीना।।
झेला जिंदगी में बहुत ही दुख वो झमेला।
पर अब ना रहता हूं कभी खामोश अकेला।।
कौंध जाती है मेरी राहों में बिजलियां अक्सर।
नजर आती कभी-कभी है थोड़ी सी डगर।।
भरता उड़ान नित कुछ घटती है दूरियाँ,
कुछ रोशन तो है होता मेरा राहे सफ़र।
पता है पूर्ण होगा सफ़र एक दिन जरूर ही,
बनी रहे जो प्यार की नजर उनकी 'नीरज" पर।।
पार लगाने का उन्होंने वादा तो है कब का ही किया,
नित ही खेते हैं बड़ी नईया, खेवनहार जो ठहरे।