STORYMIRROR

Pratima Devi

Tragedy

4.5  

Pratima Devi

Tragedy

तन्हाई गुलज़ार हुई--

तन्हाई गुलज़ार हुई--

1 min
28

बेबस ख़िज़ाँ, तन्हाई गुलज़ार हुई।

मुद्दतों बाद, फ़िज़ा भी बेज़ार हुई।।

हर तरफ़ शोले, हवाओं में आग है।

जलती चिता भी, अब बाज़ार हुई।।

रौंदता अमानुष, चीत्कारती धरा।

उद्यमी तड़पता, सुरा गुलज़ार हुई।।

रिक्त हृदय-सी अट्टालिका दहकी।

उद्धत हवा भी, क्यों आज़ार हुई।।

मुस्कराहटें भी, बेदम होकर गिरी।

ख़ुशियाँ पैसों की, शुक्रगुजार हुई।।

दीवारें रोयी, रिश्ते हुए बेज़ान-से।

ध्वस्त होतीं छतें, ज़ार-ज़ार हुई।।

हरसूँ उम्मीदें भी अब मर रही हैं।

ज़िंदगी सीलन भरी, झंजार हुई।।

पग-पग पर, बिक रहा ज़मीर है।

सत्य की चाहत, अब मज़ार हुई।।

दिलों में स्वार्थ भरा, हवा बेचैन है।

नीरस आहें भी, आज गुंज़ार हुई।।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy