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Pratima Devi

Tragedy

5.0  

Pratima Devi

Tragedy

एक माँ का इंतज़ार --!

एक माँ का इंतज़ार --!

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एक लंबा इंतज़ार!

अपलक राह ताकते,

बैठी शांत,

घंटों----

आयेंगे---

लौटकर कभी!

मिलेगी हरेक से

लग गले,

दुआएँ देती-----

लेगी जिंदगी,

फिर अँगड़ाई।

पर आज भी!

इंतज़ार---!

इंतज़ार ही

रहा उसका।

कोई नहीं लौटा,

न बेटा, न बहू औ'

न ही बच्चे--!

बस-- लौटी है ,

तो सिर्फ वही,

रोती हुई तन्हाई!


बैठी है यूँ ही

पलकें बिछाये,

आज भी राह में।

कोई तो लौटेगा--

लौटेगा!

पर! उसे नहीं

इल्म है कि--

हार चुके हैं सब,

जिंदगी की जंग !

संस्कारों की जंग--

बस चलता -----

रिश्तों का अंतर्द्वंद्व!

बस! अब तो देती हैं,

सिसकियाँ सुनाई---!


द्रवित हों,

लोग ताकते--! 

पर जालिम वक़्त!

जाने से है रोकता।

भर वितृष्णा,

भावशून्य आँखें!

ताकती---

अंतहीन राह,

इंतज़ार हरज़ाई।


निकल घरों से,

कुछ फिर पहुँचे

उसी घाट पर,

जिस पर मिली थी

कुछ माह पूर्व

बेहाल, रोती 

बिलखती----

अपने ही बच्चों द्वारा

गई ठुकराई।


बरबस ही पहुँचते!

पूछते, ठीक हैं -

"अम्मा जी"

पर! नहीं कोई आवाज़,

पथराई आँखें कब----

बेजुबान हो गई,

आज फिर एक माँ,

आस के दीप जलाये

गुमनाम हो गई।



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