एक माँ का इंतज़ार --!
एक माँ का इंतज़ार --!
एक लंबा इंतज़ार!
अपलक राह ताकते,
बैठी शांत,
घंटों----
आयेंगे---
लौटकर कभी!
मिलेगी हरेक से
लग गले,
दुआएँ देती-----
लेगी जिंदगी,
फिर अँगड़ाई।
पर आज भी!
इंतज़ार---!
इंतज़ार ही
रहा उसका।
कोई नहीं लौटा,
न बेटा, न बहू औ'
न ही बच्चे--!
बस-- लौटी है ,
तो सिर्फ वही,
रोती हुई तन्हाई!
बैठी है यूँ ही
पलकें बिछाये,
आज भी राह में।
कोई तो लौटेगा--
लौटेगा!
पर! उसे नहीं
इल्म है कि--
हार चुके हैं सब,
जिंदगी की जंग !
संस्कारों की जंग--
बस चलता -----
रिश्तों का अंतर्द्वंद्व!
बस! अब तो देती हैं,
सिसकियाँ सुनाई---!
द्रवित हों,
लोग ताकते--!
पर जालिम वक़्त!
जाने से है रोकता।
भर वितृष्णा,
भावशून्य आँखें!
ताकती---
अंतहीन राह,
इंतज़ार हरज़ाई।
निकल घरों से,
कुछ फिर पहुँचे
उसी घाट पर,
जिस पर मिली थी
कुछ माह पूर्व
बेहाल, रोती
बिलखती----
अपने ही बच्चों द्वारा
गई ठुकराई।
बरबस ही पहुँचते!
पूछते, ठीक हैं -
"अम्मा जी"
पर! नहीं कोई आवाज़,
पथराई आँखें कब----
बेजुबान हो गई,
आज फिर एक माँ,
आस के दीप जलाये
गुमनाम हो गई।
