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Pratima Devi

Tragedy Classics

4.5  

Pratima Devi

Tragedy Classics

भीगी पलकों के साये में-

भीगी पलकों के साये में-

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बादलों के आहट के स्वर,

जब मीठे सुर में गाते थे।

भीगने को आतुर मन के,

बाँसुरी से गीत सुनाते थे।।


नदी-नालों में उफान भरा,

हृदय भी सहमे सहमे थे।

तड़ित प्रचंड सवालों से,

शब्द भी वहमे वहमे थे।।


डूबे-डूबे से प्रलापी रिश्ते,

तीव्र-स्वरों के ही धारे थे।

डोलते तरु की शाखा से,

गिरते वे भय के मारे थे।।


धुली धूप भी चोरी हो गई,

मुरझाए इंद्रधनुष प्यारे थे।

घनघोर बरसने को बादल,

आकर भी, तरसे सारे थे।।


धुंध सी छायी आँखों में,

रूप द्रवित अँधियारे थे।

भीगी पलकों के साये में,

मन के छिपे उजियारे थे।।


अब कौन यहाँ आकर के,

सहस्र दीप जलाए सारे ये।

सुधारस बरसा कर जग में,

प्रेमगीत गुंजाए घर-द्वारे ये॥


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