तजुर्बे से कह रहा हूँ
तजुर्बे से कह रहा हूँ
पहली साल हम मिले थे अजनबी की तरह
दूसरे साल दोस्ती का हाथ बढ़ाया था
तीसरे साल बातें मुलाकाते बढ़ने लगी
चौथे साल हमें बेइंतहा प्यार हुआ था
पांचवे साल एक दूजे के हो गए थे
छठवें साल लोग दुश्मन बनकर खड़े थे
सातवें साल दिल खुद का तोड़ना पड़ा था
आठवें साल फिर से दूर रह ना सके
नौवें साल घर को मनाने चले थे
दसवें साल फिर शादी का पैगाम आया था
कहने को तो दस साल की कहानी हमारी
पर हमनें जाने कैसे ये हर दिन बिताया हैं
लोग कैसे धोखा दे देते हैं प्यार में
हमें तो मोहब्बत ने ही जीना सिखाया है
तजुर्बा है इसलिए कह रहा हूँ
अगर प्यार हो तो निभाने की हिम्मत रखों
वक्त तो इम्तिहान लेता ही रहेगा बस
तुम प्यार के खातिर सब किमत रखों।