स्टेशन के बाहर भिखारी
स्टेशन के बाहर भिखारी
स्टेशन के बाहर एक बूढ़ा आदमी,
आने जानेवालों से भीख मांग रहा था।
पैसों को इकट्ठा करने के लिए,
अपनी फटी जेब दिखा रहा था।
बोलने में शायद परेशानी सी थीं,
कटी जबान सभी को दिखाता था।
मिल जातें थे कुछ पैसे क्योंकि,
हर राही कुछ ना कुछ दे जाता था।
वों बारिश की रात थीं और,
उसे चलने में थोड़ी सी परेशानी थीं।
मैंने एक छाता उसके हाथ दिया,
मुझे बिना छातें चलने में भी आसानी थीं।
छोड़ उसे मैं वहाँ से निकल गया और
जाने क्या सोचकर फिर से मुड़कर आया।
हक्का बक्का सा रह गया था देखकर,
जो मैंने उस दिन उसके घर में पाया।
>एक टीवी, फ्रिज, वाशिंग मशीन, संदूक,
और ना जाने वहाँ क्या क्या रखा था।
नकली जबान फिर बाहर निकाला
जो उसने अपने मुंह में लगा रखा था।
फिर समझा मूर्खता कुछ हममें भी है,
जो इन्हें हम सब रोज पैसे देते हैं।
ऐसे मनचलों को इस हद तक,
आखिर हम जैसे ही बढ़ावा देते हैं।
दूसरे दिन देखा तो कहा मैंने उनसे,
फटी जेब है तुम्हारी जरा इसे सिलवाओं।
हाथ पैर तो सही सलामत हैं लगते हैं,
भीख से अच्छा कुछ करके कमाओं।
कहने लगे फटी जेब सिलवाने का,
बताओ जरा अगर हैं कहीं कोई कायदा।
जब पैसे ही नहीं है पास में तो फिर,
जेब सिलवाने का क्या फायदा ?