क्षत्राणी
क्षत्राणी
नहीं डरती मैं जीवन के संग्राम से,
मौत को सर आंखों पर रख कर चलती हूं।
दे भीख में कोई जिंदगी तो धिक्कार है,
ऐसी जिंदगी को पैरों तले कुचलती हूं।
चलतीं हूं सीने में ज्वाला लेकर,
गर जल गई तो बुझाना मुश्किल है।
पानी होकर आग से खेलतीं हूं,
इस आग को आग से जलाना मुश्किल हैं।
खाक करके जीवन सारा,
ख्वाबों को आसमां में बिखेर दिया है।
एक कफन को चुनरी में लपेटकर,
मैंने मौत की आंखों में देख लिया हैं।
अब कौन डराएं किसको चलो देखते हैं,
मौत डर जाए या घर जाए।
एक युद्ध होगा जिंदगी और मौत के बीच,
एक कोशिश हैं कि मौत भी डर जाए।
अब टूटता कौन है तारों में देखो,
डूब रही किसकी कश्ती किनारों पे देखो।
इज्जत की मौत ही बेहतर हैं,
बेज्जती की जिंदगी उनके मुंह पे फेंको।
तुम जब जब मुझे तोड़ोगे,
तब तब एक नई कहानी आएगी।
डर को छोड़ चुकी मैं पीछे,
अब लड़ने वाली क्षत्राणी आएगी।
