चादर
चादर
नादानी में उसने ओढ़ी,
एक फूलों की चादर।
चादर अपनी ओढ़े,
वो बैठी तकती जाये।
चादर ओढ़े ख्वाब सजाये,
जतन पूरे ही कर डाले।
जब चाह चादर से निकले,
वो चीर सी बढ़ती जाये।
मन के भाव मन में रखें,
मुस्काती जाये।
चादर में उठती हूक,
फिर भी इठलाती जाये।