STORYMIRROR

Vandana Purohit

Tragedy Action Crime

4  

Vandana Purohit

Tragedy Action Crime

जिंदगी की आस पे

जिंदगी की आस पे

1 min
228

   

 (मणिपुर कांड)


त्याग अपने संस्कार पथहीन 

बर्बरता लिए बेखौफ चले है ।

वे असुर मानव रूप धारी,

 लूटने नारी कि अस्मत ।


हो युवा चाहे प्रौढ़ नारी।

जिंदगी की आस पे,

भय के माहौल में 

दिया अपना सर्वस्व।


अब बेमौत तिल तिल मरेगी,

रोज अबला बेचारी।

एक दिन का मौन होगा,

राजनीति का खेल होगा

फिर वही दुपहरी।


राहें होगी खौफ भरी,

नजरे होगी डरी सहमी।

 फिर होगी बंधन में, 

वो अबला नारी।


कब सोच बदलेगी?

कब वो स्वच्छंद होगी?

कब तक घुट घुट जीयेगी?

 कब न्याय का बिगुल बजेगा?

 कब जागेगा प्रहरी?

कब सूली पर वो चढ़ेंगे?


न्याय की आस लिए,

इंतजार में हर नारी।

  


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Tragedy