A note to self --- THE REVERSE
A note to self --- THE REVERSE
कभी सोचा है जिसे पाने के लिए इतनी दूर निकली हो,
अगर वह नहीं मिला तो क्या करोगी?
जिस झूठ को देखने से पहले तुम आंख बंद कर लेती हो,
अगर हकीकत बनकर सामने आए तो तुम क्या करोगी?
कभी सोचा है वो लौट कर ना आया तो क्या करोगी?
कभी सोचा है अगर वो खुद ही ना आना चाहे तो कब तक राह तकोगी?
नहीं सोचा ना? सोचना चाहिए!
सोचना जरूरी है!
सोचना जरूरी है कि वो खुदगर्ज हो सकता है, सोचना जरूरी है कि वो किसी और का हो सकता है।
शायद वो कुछ छुपाएगा नहीं।
पर शायद,
ये भी तो मुमकिन है कि वो सब कुछ बताएगा नहीं।
तुम खुद सारे सवाल उठाओगी और
खुद ही जवाबों को सुलझाते बैठे रहोगी।
सोचो जरा, सारे स
वालों का समंदर और
जवाबों की लहरों को तुम संभाल पाओगी क्या?
क्या हो,
अगर उसे कुछ फर्क ना पड़ा तुम्हारी बातों से?
क्या हो अगर लौट कर ना आ पाया हालातों से? क्या करोगी तुम?
ये जो उम्र से ज्यादा समझदार बनी फिरती हो,
क्या करोगी अगर बेवकूफ बन जाओगी तो?
क्या फिर से खुद को यही सब कहकर बहलाओगी?
खुद से यही कहना होगा।
कोई पछतावा नहीं रखना होगा।
तुमने सब कुछ कर लिया,
अब तुमसे कुछ भी नहीं होगा।
क्या यही कहोगी? क्यों सोचती हो इतना?
कबर बनाकर बातों पर मिट्टी डालो,
खुद को खुद की उलझनों से बाहर निकालो।
बस इससे ज्यादा कुछ करना जरूरी नहीं है।
अब वो मिलने को पूछे तो कह देना जरूरी नहीं हैं।