जिंदगी शकुनि का जुआ है
जिंदगी शकुनि का जुआ है
जिंदगी खेल नहीं,
शकुनि का जुआ है
हर पल एक महाभारत पसरा है
तुम बताओ तुम क्या हो
युधिष्ठिर हो, अर्जुन हो,
दुर्योधन हो या दुशासन
हर पल ये जिंदगी बस तुमसे
यही पूछ रही है !
जिंदगी खेल नहीं,
शकुनि का जुआ है
जिंदगी में कभी तुम्हें
एकलव्य भी बनना होगा
जिंदगी में कभी तुम्हें
कर्ण भी बनना होगा
जिंदगी में कभी तुम्हें
भीष्म भी बनना होगा!
जिंदगी खेल नहीं,
शकुनि का जुआ है !
अब तुम्हें तय करना है
एकलव्य की भांति,
तुम प्रतिमाओं से,
कितना सीख पाते हो
कर्ण की भांति ,
जीवन की भट्टी में,
अपमान का गरल,
कितना पी पाते हो
अर्जुन की भांति,
लक्ष्य को,
कितना भेद पाते हो
द्रोपदी की भांति,
अपने कृष्ण को विपत्ति में,
कितना बुला पाते हो
कुंती की भांति,
सब जीत कर भी,
कितना हार पाते हो!
जिंदगी खेल नहीं,
शकुनि का जुआ है!
कृष्ण की भांति,
तटस्थ रहकर भी,
कैसे पूरी महाभारत को,
तुम समाप्त कर पाते हो!
ये सब तुम पर निर्भर करता है,
जिंदगी खेल नहीं
शकुनि का जुआ है।