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थैली का वह खून

थैली का वह खून

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रक्त दाता के रक्तदान के बाद

था वह खून एक थैली में

मरीज को चढ़ाने से पहले तक

वह खून था उसी थैली में...


उस पर था तो बस

इतना ही लगा हुआ सा लेबल

ए, बी, एबी और ओ उसकी

पॉजिटीव और नेगेटिव पहचान केवल...


खून निकालने से पहले

और बाद मे खून चढ़ने के

वह रंगा था और दुबारा रंगेगा

और नाम किसी मज़हब के...


वही खून इन्सानीयत भूलकर

इन्सान की रगों में दौड़ता है

इन्सान इन्सान को आपस में

फिर क्या खूब लड़ाता है.....


थैली का वह खून सोचने लगा

धर्म, जात, पंथ को छोड़

काश ऐसा हो जाता

सब भूलकर मैं इन्सान में

इन्सानियत बनकर

हर एक इन्सान की रगों में दौड़ता.....


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